समुद्र के वर्षावन कहलाने वाले कोरल रीफ समाप्ति के कगार पर



सिडनी। समुद्र के वर्षावन कहलाने वाले कोरल रीफ यानी प्रवाल भित्तियों को भी इंसान अंत के कगार पर पहुंचा चुका है।कोरल रीफ यानी प्रवाल समुद्र में रहने वाले ऐसे सूक्ष्म जीव हैं जो अपना भोजन खुद तैयार नहीं कर सकते हैं। लेकिन उनकी उपस्थिति की बदौलत समुद्र के 25 फीसद जीव जिंदा रहते हैं। समूह में रहने वाले यह जीव मरते हैं तो इनके शरीर का कैल्शियम कार्बोनेट सख्त रूप लेकर एक चट्टान की तरह बन जाता है। हजारों सालों से चल रही इस प्रक्रिया ने प्रवाल भित्तियों को आकार दिया है। ये चट्टानें अटलांटिक सागर, हिंद महासागर, प्रशांत महासागर, दक्षिणी चीन सागर में पाई जाती हैं।

ऑस्ट्रेलिया की ग्रेट बेरियर रीफ के बारे में लगभग सभी ने सुना ही होगा। यह दुनिया की सबसे लंबी कोरल रीफ है। लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि अगले 3 दशकों में कोरल रीफ का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। खास बात यह है कि इनके खत्म होने के पीछे भी हम इंसान ही हैं।कोरल रीफ यानी प्रवाल भित्ति को मूंगे की चट्टान भी कहा जाता है। यह समुद्र के अंदर कम गहराई वाली जगहों पर पाई जाती है। क्योंकि ज्यादा गहराई वाली जगह पर इन्हें ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है। यह एक तरह की कैल्शियम कार्बोनेट की चट्टान होती है, जिसे प्रवाल नाम के जीव बनाते हैं। प्रवाल कठोर संरचना वाले चूना प्रधान जीव( सिलेन्ट्रेटा पोलिप्स) जो कैल्शियम कार्बोनेट छोड़ते हैं उसी से यह भित्ति आकार लेती हैं। यह ऐसी जगह पर पाए जाते हैं जहां समुद्र का तापमान 20-30 डिग्री सेल्सियस के आसपास होता है। दरअसल इन जीवों के अस्थिपंजर यानी कंकाल और कार्बोनेट तलछट के हजारों सालों से जमा होने से यह दीवार तैयार होती है। ऑस्ट्रेलिया में विश्व की सबसे बड़ी कोरल रीफ पाई जाती है।कोरल रीफ समुद्र सतह के 1 फीसद से भी कम हिस्से को ढंकती है, फिर भी यह धरती के सबसे बेहतर और विविधता लिए हुए इकोसिस्टम में शामिल है। समुद्र में पाई जाने वाली 25 फीसद प्रजातियां भोजन को लेकर कोरल रीफ पर ही निर्भर करती है। वहीं करीब 4000 से ज्यादा मछलियों की प्रजातियां के लिए ये खाने के साथ ही रहने की भी जगह है। यही नहीं मछलियां अपनी अगली पीढ़ी को भी यहीं जन्म देती हैं।कोरल रीफ की बदौलत समुद्र में उठने वाले तूफान और उनसे होने वाले नुकसान रुक जाते हैं।

इनकी कठोर सतर लहरों की ताकत को 97 फीसद तक घटा देती है। जिससे तट तक पहुंचते-पहुंचते तूफान शांत हो जाते हैं। यही नहीं इसकी वजह से हजारों लोगों को रोजगार भी मिलता है। मसलन 13,48,000 वर्ग किलोमीटर में फैले ग्रेट बैरियर रीफ पर तकरीबन 64 हजार लोगों का रोजगार निर्भर है। दुनिया भर से हर साल इस रीफ को देखने आने वाले पर्यटकों की बदौलत ऑस्ट्रेलिया को करीब 42 हजार करोड़ रुपये की कमाई होती है।कोरल रीफ की कठोर सतह के अंदर सहजीवी संबंध से पैदा हुए रंगीन शैवाल जूजैंथिली पाए जाते हैं। कोरल पोलिप्स अपने भोजन के लिए इसी शैवाल पर निर्भर रहता है। यह दोनों जीव एक सहजीवन में जिंदगी गुजारते हैं, जहां शैवाल प्रकाश संश्लेषण के जरिए भोजन तैयार करते हैं वहीं कोरल उन्हें रहने के लिए सुरक्षित माहौल देता है। लेकिन जैसे-जैसे प्रदूषण बढ़ रहा है, वैसे-वैसे इस शैवाल को प्रकाश संश्लेषण के लिए सूरज की रोशनी मिलना मुश्किल होती जा रहा है।

क्योंकि समुद्री की ऊपरी सतह पर मौजूद प्रदूषक ने पानी के अंदर पहुंचने वाली सूरज की रोशनी को रोक दिया है।इसी तरह ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने की वजह समुद्र का स्तर दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है, जिससे ये रीफ गहरे पानी में डूबती जा रही हैं। जहां तक सूरज की रोशनी का पहुंचना और मुश्किल होता जा रहा है। इसके साथ साथ समुद्र 48 फीसद फॉसिल फ्यूल उत्सर्जन को अवशोषित करके और ज्यादा अम्लीय होता जा रहा है। जिस वजह से कोरल ब्लीचिंग की प्रक्रिया हो रही है।