जिले के पुलिस महकमें पर धनबल हावी



आर.के.श्रीवास्तव

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काल चिन्तन,सिंगरौली। देशभक्ति जनसेवा का नारा लेकर देश के पुलिस विभाग को जनता की सेवा में तत्पर किया जाता है। देश की गरीब मजलूम जनता को न्याय दिलाने, उसको राहत देने के लिए पूरे देश में पुलिस बल तैनात किया गया है। लेकिन मूल्यों के अवमूल्यन के चलते देशभक्ति और जनसेवा की जगह पर स्वयंसेवा का दौर चल रहा है। 

एक जमाना था जब अंग्रेजों ने पुलिस विभाग की स्थापना की थी। उस समय ब्रितानिया शासन ने पुलिस विभाग को खास जिम्मेदारी सौंपी थी। देश में अंग्रेजी शासन के खिलाफ उठते हुये सारे आन्दोलनों को कुचला जाय, नामजद क्रांतिकारियों को पकड़कर जेल में ठूसा जाये एवं बितानी शासन के हर आदेश का अक्षरश: पालन कराया जाये। अंग्रेजों के जमाने से लेकर आज तक पुलिस विभाग द्वारा जनता के उत्पीड़न की मानसिकता अभी भी चलती आ रही है। शिकायतकर्ता अगर गरीब है तो उसे पहुंचते पहुंचते दस-बीस शुद्ध गालियों का सामना करना पड़ता है। इसके बाद सुविधा शुल्क लेकर उसकी रिपोर्ट दर्ज की जाती है। यदि थानेदार का आदेश हुआ कि गांव में जाकर जांच करो तो गांव में जाने का टीए, डीए भी उसी फरियादी से मांगा जाता है। न मिलने पर जांच लम्बित रहती है। 

पुलिस का उक्त नजरिया लम्बे समय से देश पर हावी रहा है लेकिन इस नजरिये में अभी खास परिवर्तन हुये हैं। भारतीय राजनीति के तेजी से हुये अवमूल्यन के कारण देश का पूरा पुलिस तंत्र निरंकुश हो चला है। फरियादी के ऊपर ही मुकदमा कायम कर देना, आरोपी का मुक्त संरक्षण देना एवं हर जांच में सुविधा शुल्क लेना पुलिस की नीयत बन गयी है। सिंगरौली जिले में थानो एवं पुलिस चौकियों की पोस्टिंग में पुलिस विभाग के मूल्यों का अवमूल्यन साफ स्पष्ट तौर पर दृष्टिगोचर हो रहा है। पुलिसकर्मी विधायक के पास जाते हैं, सत्तापक्ष के मंत्रियों के पास जाते हैं, और चढ़ोत्तरी चढ़ाकर मनमुआफिक पोष्टिंग करवाते हैं। जो जितना धन देगा वही थानों एवं पुलिस चौकियों में पदस्थ होगा। मसलन पुलिस तंत्र पर धन बल पूरी तौर से हावी हो चुका है। अब आप आसानी से अंदाजा लगा सकते हैं कि धन देकर थानों एवं पुलिस चौकियों में पदस्थ होने वाला पुलिसकर्मी जनता की कितनी नि:स्वार्थ सेवा कर सकता है। थाना प्रभारी एवं चौकी प्रभारियों के क्रियाकल्प इस ढंग के होते हैं कि वे अपने थानों तथा चैकियों के अन्य पुलिस बल की परवाह नहीं करते। एक समय था कि यदि सुविधा शुल्क मिलता था तो थाने में मुंशी से लेकर अन्य कर्मचारियों में वह बांटा जाता था। अभी की स्थिति यह है कि प्रभारी इस बात पर ध्यान देता है कि उसके धन का टारगेट कितना है। बांकी पुलिस व्यवस्था, पुलिस बल में साहचर्य दरकिनार होता है। 

पुलिस विभाग की जनता के प्रति बहुत भारी जवाबदेही होती है। जिले का पुलिस महकमा उस जवाबदेही के प्रति कितना उत्तरदायी होता है। यह जिले में बढ़ते हुये अपराधों एवं उसकी गुणवत्ता को देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।