साहब ये रहने का नहीं, मुआवजे का घर है






सिर चढ़कर बोल रहा मुआवजा माफियाओं का गोरखधंधा

काल चिंतन कार्यालय

वैढ़न,सिंगरौली। मध्य प्रदेश का सिंगरौली जिला अपने में अनेकों तरह की विलक्षणता लिये हुये है। चाहे कोयले का उत्पादन हो या बिजली का उत्पादन हो यह जिला देश में अपनी धमक रखता है। इन दो विलक्षणताओं के अतिरिक्त और भी बहुत सी विलक्षणताएं हैं जिनपर शासन प्रशासन का ध्यान नहीं जाता उसे प्रभू की नियत मानकर छोड़ दिया जाता है। ऐसी विलक्षणताएं सिंगरौली जिले में हासिए पर हैं। यूं तो सिंगरौली जिले में यदि सही आंकड़ा प्राप्त किया जाये तो हजारों परिवार ऐसे होंगे जिनके सर पे छत नहीं है। लेकिन सिंगरौली जिले की यह विलक्षणता ही है कि जिस गांव में पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है वहां रातो रात हजारों मकान बनकर तैयार हो गये। जी हाँ, हम सिंगरौली जिले के मुहेर गांव की बात कर रहे हैं। चारो तरफ पहाड़ियों से घिरा यह गांव खुद पहाड़ पर स्थित है। जहां सदियों से पीने का पानी लोगों को नशीब नहीं होता रहा है। किसी तरह से पहाड़ी से उतरकर लोग पानी लेकर पहाड़ी पर चढ़ते थे। कंपनियों के आने के बाद मुहेर गांव में टैंकर से पानी भेजा जाता था। मुहेर गांव की बद स्थिति के बारे यह चर्चा मात्र इसलिए है क्योंकि उस धरती पर आज सिंगरौली जिले में निवास करने वाले मूल निवासियों के अलावा बाहरी लोगों के भी कदम पड़ रहे हैं। पूरे लाव लश्कर के साथ द्रूत गति से रातों रात हजारों के हजारों मकान छत एवं टीन शेड डालकर बनाये जा रहे हैं। कारण यह है कि इस गांव में एनसीएल की गोरबी बी परियोजना तथा रिलायंस कोल प्रबंधन भूमियों का अधिग्रहण कर रहा है। मुहेर गांव के गरीबों से जमीन लेकर प्रशासन के लोग व्यापारी, बड़े बड़े उद्योगपति अपने मकान बनवा रहे हैं। लेकिन यह मकान रहने के लिए हर्गिज ही नहीं हैं, यह मकान मुआवजे के लिए बनाये गये हैं कि कंपनी आपके मकान की तीन गुना कीमत अदा करेगी। दो लाख लगाकर मकान बनवाइये और छ: लाख रूपया प्राप्त करिये। यदि थोड़ी सी चालाकी कर लिये तो यह राशि दस लाख रूपये तक आ जायेगी। 

सिंगरौली जिले में इस समय तकरीबन आधा दर्जन नयी कंपनियां आयी हुयी हैं। मुआवजा माफिया पूरी तौर पर सक्रिय है। एक स्थान से मुआवजा मिला कि ईंटा से लेकर पूरा विल्डिंग मटेरियल अपने वाहन से लेाड करके दूसरी कंपनी के क्षेत्र में नियत स्थान पर मकान बनवाया जाता है। इसमें प्रशासन के लोग तथा सुविधा संपन्न लोगों की भरमान पड़ी है। मुहेर के जिन जंगलों में सियार हुंआते थे, भालुओं की गरज सुनायी देती थी। रात में जुगनु चमकते थे। वहां अब मकानों की चहल पहल है। मुआवजे का मकान बनाने में जिस तरह मुआवजा माफिया अपना दिमाग लगाते थे उसमें प्रबंधन तथा प्रशासन के लोगों का सहयोग रहता है। जो मकान अभी अधूरे हैं, छत नहीं पड़ी है उन मकानों की भी नंबरिंग हो गयी है। जिले के मूल निवासी हासिए पर हैं और मुआवजाखोरों की पौ बारह है।