2008 अहमदाबाद सीरियल बम ब्लास्ट मामले में 38 दोषियों को मौत की सजा



अहमदाबाद। वर्ष 2008 के अहमदाबाद सीरियल बम धमाकों की त्वरित सुनवाई के लिए नामित एक विशेष अदालत ने शुक्रवार को गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत 49 दोषियों में से 38 को मौत की सजा सुनाई।अदालत ने 11 अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। मामले के सिलसिले में गिरफ्तार किए गए 77 लोगों में से 28 को बरी कर दिया गया और 49 को दोषी करार दिया गया।मामले को दुर्लभ से दुर्लभतम मानते हुए विशेष अदालत ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 38 दोषियों को फांसी की सजा सुनाई।पीड़ित परिवारों के लिए, अदालत ने प्रत्येक को 1 लाख रुपये, गंभीर रूप से घायलों के लिए 50,000 रुपये और नाबालिग घायलों के लिए 25,000 रुपये का मुआवजा दिया।कोर्ट ने दोषियों पर 2.85 लाख रुपये का जुमार्ना भी लगाया है।फैसला आईपीसी की धारा 302 (ए) और यूएपीए की धारा 16 (1) (बी) के तहत सुनाया गया।26 जुलाई, 2008 को शहर के विभिन्न हिस्सों में 20 बम विस्फोट हुए, जिसमें 56 लोग मारे गए और 246 अन्य घायल हो गए।अदालत ने आठ फरवरी को मामले में 49 लोगों को दोषी ठहराया था। उन्हें भारतीय दंड संहिता, गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत अपराध करने का दोषी पाया गया।गौरतलब है कि शहर में सरकारी सिविल अस्पताल, अहमदाबाद नगर निगम द्वारा संचालित एलजी हॉस्पिटल, बसों में, पार्किंग में खड़ी मोटरसाइकिलों, कारों तथा अन्य स्थानों पर 26 जुलाई 2008 को एक के बाद एक धमाके हुए थे जिसमें 58 लोगों की मौत हो गयी थी।
78 में से 29 बरी और एक सरकारी गवाह बना
8 फरवरी को सिटी सिविल कोर्ट ने 78 में से 49 आरोपियों को यूएपीए(गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम) के तहत दोषी करार दिया था। इनमें से एक दोषी अयाज सैयद को जांच में मदद करने के लिए बरी किया जा चुका है। 29 आरोपी सबूतों के अभाव में बरी हो चुके हैं। फैसले के वक्त कोर्ट ने धमाकों में मारे गए लोगों के परिजनों को एक लाख, गंभीर घायलों को 50 हजार और मामूली घायलों को 25 हजार रुपए की मदद देने का भी आदेश दिया।
70 मिनट में हुए थे 21 धमाके, गोधरा कांड के जवाब में किये गये थे ब्लास्ट
26 जुलाई 2008, यही वह दिन था जब 70 मिनट के दौरान 21 बम धमाकों ने अहमदाबाद की रूह को हिलाकर रख दिया। शहर भर में हुए इन धमाकों में 56 लोगों की जान गई, जबकि 200 लोग घायल हुए थे। धमाकों की जांच-पड़ताल कई साल चली और करीब 80 आरोपियों पर मुकदमा चला। पुलिस ने अहमदाबाद में 20 एफआईआर दर्ज की थीं, जबकि सूरत में 15 अन्य एफआईआर दर्ज की गई थी, जहां विभिन्न स्थानों से जिंदा बम भी बरामद किए गए थे।ब्लास्ट के बाद गुजरात की सूरत पुलिस ने 28 जुलाई और 31 जुलाई 2008 के बीच शहर के अलग-अलग इलाकों से 29 बम बरामद किए थे, जिनमें से 17 वराछा इलाके में और अन्य कतारगाम, महिधरपुरा और उमरा इलाके में मिले थे। जांच में पता चला कि गलत सर्किट और डेटोनेटर की वजह से इन बमों में विस्फोट नहीं हो पाया था।ये ब्लास्ट आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन  और बैन किए गए स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया  से जुड़े लोगों ने किए थे। विस्फोट से कुछ मिनट पहले, टेलीविजन चैनलों और मीडिया को एक ई-मेल मिला था, जिसके जरिए कथित तौर पर इंडियन मुजाहिदीन ने धमाकों की चेतावनी दी थी। पुलिस का मानना है कि आईएम के आतंकियों ने 2002 में गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के जवाब में ये धमाके किए थे। इस मामले के एक अन्य आरोपी यासीन भटकल पर पुलिस नए सिरे से केस चलाने की तैयारी में है।गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी के आदेश पर जेसीपी क्राइम के नेतृत्व में अहमदाबाद क्राइम ब्रांच की एक विशेष टीम का गठन किया गया था। डीजीपी आशीष भाटिया ने इस टीम को लीड किया। वहीं, इस टीम में अभय चुडास्मा  और हिमांशु शुक्ला  ने अहम भूमिका निभाई। मामलों की जांच तत्कालीन डीएसपी राजेंद्र असारी, मयूर चावड़ा, उषा राडा और वीआर टोलिया को सौंपी गई थी। अहमदाबाद क्राइम ब्रांच की इस विशेष टीम ने 19 दिनों में मामले का पर्दाफाश किया था और 15 अगस्त 2008 को गिरफ्तारी का पहला सेट बनाया था।