आदिवासी बेटी बनेगी जैन साध्वी
19 साल की परिधि बेंगलुरु में लेंगी दीक्षा, बचपन में साध्वी को देख कहती थी- मुझे भी ऐसी ड्रेस पहनना है
राजगढ़/धार। आदिवासी समाज की 19 साल की बेटी साध्वी बनने जा रही हैं। मोहनखेड़ा तीर्थ संत समुदाय में ऐसा पहली बार होगा, जब आदिवासी समाज की युवती दीक्षा ग्रहण कर संयम के मार्ग पर चलेगी। धार की परिधि 14 फरवरी को बेंगलुरु में दीक्षा ग्रहण करेगी। परिधि का बचपन से साध्वी बनने का सपना था।परिधि सरदारपुर तहसील के छोटे से गांव छड़ावद की रहने वाली हैं। पिता विजय सिंह डामोर और मां अनीता की 4 बेटियों और 1 बेटे में वह सबसे छोटी हैं। बड़ा भाई संतोष है। चार बेटियों में जमना और गंगा जुड़वा हैं। तीसरी बेटी सरस्वती है।
बचपन से ही साधु के कपड़े करते थे आकर्षित: विजय सिंह ने बताया कि परिधि छोटी थी, तो साधुओं के कपड़े देख कहती थी कि मुझे ऐसी ही ड्रेस पहनना है। वह छड़ावद में पली है। राजगढ़ के मेला मैदान के शासकीय स्कूल से 10वीं तक पढ़ाई की है। मुमुक्षु परिधि कुमारी ने साध्वी की सेवा के दौरान जिमीकंद का त्याग कर जैन संस्कारों को ग्रहण किया। 19 महीने में पर्यूषण पर्व के दौरान एकाशना उपवास किए। रोज सुबह 5 बजे उठकर और शाम को प्रतिक्रमण करना परिधि का रुटीन है। परिधि ने कहा कि संसार का भौतिक सुख छोड़ने जैसा है। संयम में रहकर खुद का आत्म कल्याण और औरों का कल्याण करने के लिए प्रेरित करूंगी। मैंने प्रतिक्रमण, 9 स्मरण, साधु क्रिया के कर्तव्य, वैराग्य शतक की पढ़ाई पूर्ण कर ली है। साथ ही गिरनार तीर्थ, पालीताना तीर्थ, शंखेश्वर तीर्थ, सम्मेद शिखर तीर्थ आदि तीर्थों की यात्राएं की हैं। संत दीक्षा प्रदाता हितेश चंद्र विजय ने बताया की जैन साधु, साध्वी बनने के लिए किसी भी जाति, समाज का सदस्य संयम अंगीकार कर सकता है। कुल को नहीं, संस्कारों की प्रधानता दी है।
दादा ने कई लोगों को नशे से दूर किया: विजय डामोर ने बताया कि पिता रामसिंह ने आचार्य ऋषभचंद्र सूरीजी की प्रेरणा से कई आदिवासियों को नशा मुक्ति का संकल्प दिलाया। उन्होंने भी बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू, शराब का त्याग कर दिया है। अब उनका परिवार दूसरों को भी नशे से दूर रहने के लिए प्रेरित करता है।