लंबित मांगों के समर्थन में एनटीपीसी वर्कमैन कर्मचारियों ने निकाला कैंडल मार्च

 


काल चिंतन कार्यालय

वैढ़न,सिंगरौली। सोमवार को एनटीपीस कर्मचारी संघ  के नेतृत्व में एनटीपीसी के वर्कमैन कर्मचारियों ने अपनी लंबित मांगों के समर्थन में एनएच 3 लेक पार्क से प्रशाशनिक भवन तक कैंडल मार्च निकाला। इस मार्च में अनूठे नारे लगाए गए। एक ओर एनटीपीसी जिंदाबाद! तो वहीं दूसरी तरफ धृतराष्ट्र प्रबंधन मुर्दाबाद! के नारे लगाये गये। आंदोलनकारी कर्मचारियों ने बताया कि एनटीपीसी उनकी जड़ है, और हमेशा एनटीपीसी के लिए कर्मचारियों ने अपना शत प्रतिशत दिया है। लेकिन कर्मचारियों के हिस्से को हजम करने वाली प्रबंधन को चेताने के लिए इन नारों का प्रयोग किया जा रहा है। दिनांक 03 दिसम्बर को हुई एनबीसी मीटिंग में वर्षों से लंबित मांगों/ समस्याओं को एकतरफ रखते हुए प्रबंधन ने जिस तरह से  55 में से मात्र 24 सदस्यों की सहमति को ही सबकी राय मानकर  अवैध अग्रीमेंट के तहत एक्सग्रसिया हम लोगों पर थोपा है ये एनटीपीसी इतिहास मे पहली बार हुआ है। आपको बता दें कि एनबीसी की बैठकें सिर्फ एक्स ग्रेशिया निर्धारण के समय ही प्रबंधन बुलाती है। इसलिए यूनियन की मांग थीं कि हमारी अन्य समस्याओं को भी हल किया जाए और एक्स ग्रेशिया की जगह फॉर्मूला आधारित ( अधिकारी वर्ग की तरह) पीआरपी दिया जाए। 01.01.2017 से लागू अवैध वेतनमान को निरस्त कर सरकार द्वारा तय किए गए फिटमेंट फार्मूले से नए पे स्केल बनाएं जाएं और त्रिपक्षीय समझौता संपन्न हो। इस अवैध पे स्केल की वजह से कंपनी की प्रतिभा कुंठित हुई है और पलायन भी करने पर मजबूर है। डीटी बैच के कर्मचारी 2 साल से भीषण शोषण का सामना कर रहे हैं। इसी तरह 2 साल से ई 2 के लिए प्रोमोशन बिना कारण बंद जबकि बाहर से लगातार भर्तियां की जा रहीं हैं। सेवा उपरांत पेंशन योजना में कर्मचारी और अधिकारी द्वारा समान योगदान (1 लाख) होता है किंतु ओपीडी/आईपीडी में गंभीर असमानता, एसएलपीएस में कोई वेतनवृद्धि न देना... जैसी समस्याओं से कर्मचारी वर्ग त्रस्त है। इसी तरह विंध्याचल परियोजना में 640 अधिकारी जबकि 400 से भी कम वर्कमैन हैं जो कि अपने आप में भीषण विसंगति है। एनटीपीसी प्रबंधन की असंवैधानिक कार्यप्रणाली और वर्कमैन वर्ग के शोषण वाली सोच के चलते एनटीपीसी की लगभग सभी परियोजनाओं में ये आंदोलन भारतीय मज़दूर संघ के नेतृत्व में चल रहा है। देश में कोरोना के आसन्न खतरे के बाबजूद ये कर्मचारी सड़क पर आने को बाध्य हैं जिससे कर्मचारियों के स्वास्थ्य को संकट में डालने के साथ साथ देश की कोरोना के खिलाफ लड़ाई को भी एनटीपीसी प्रबंधन अपने तानाशाही रवैये से संकट में डाल रही है और कुंभकर्णी निंद्रा में लीन है।एक तरफ तो कंपनी प्रमुख एनटीपीसी को परिवार कहते हैं तो उनसे ये सवाल पूछना वाजिब है कि क्या ये कर्मचारी परिवार की परिधि से बाहर हैं? अगर नहीं तो इतना गंभीर शोषण क्यों? इतनी संवेदनहीनता क्यों? 5,6,7,8 जनवरी को भोजनावकाश विरोध प्रदर्शन भी है और आंदोलनरत कर्मचारी 11 जनवरी से 13 जनवरी तक अनशन पर भी बैठेंगे।