लाकडाउन के दौरान वायुमंडल में एरोसॉल की मात्रा में आयी कमी जिस करण बिजली गिरने की घटनाएं हुयी कम



लंदन। अध्ययन में पता चला है कि लाकडाउन के दौरान बिजली गिरने की घटनाओं में कमी आई है। लॉकडाउन की वजह से लोगों ने घर पर ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताया, ऊर्जा की खपत कम हुई, यात्राओं में भारी कमी हुई जिससे वायु प्रदूषण कम हुआ, पानी भी साफ हो गया। नए शोध ने दर्शाया है कि इससे इस अवधि में बिजली गिरने की घटनाएं भी कम हुईं। अध्ययन में पाया गया कि बिजली गिरने की घटना के पीछे कारक घटकों की कमी के कारण ऐसा हुआ

ताजा अध्ययन मे दर्शाया गया था कि लॉकडाउन में मानव गतिविधि के कारण एरोसॉल उत्सर्जन में कमी हुई थी। इससे वायुमडंल में एरोसॉल की मात्रा में भी कमी हो गई। एरोसॉल वायुमंडल में वे सूक्ष्म कण होते हैं जो मानव द्वारा उपयोग में लाए जाने वाला ईंधन के जलने से पैदा होते हैं। मैसाचुसैट्स इस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में फिजिकल मेट्रोलॉजिस्ट एर्ले विलियम्स ने बताया कि शोधकर्ताओं ने बिजली चमकने की प्रक्रिया को मापने के लिए तीन पद्धतियों का उपयोग किया और सभी नतीजों ने एक ही ट्रेंड दिखाया। उन्होंने पाया कि बिजली चमकने और गिरने की घटनाओं में कमी का संबंध कम होती एरोसॉल की मात्रा से है। जब वायुमंडल में मौजूद ऐरोसोल भाप को साथ ले लेते हैं तब बादलों में पानी की बूंदों का निर्माण होता है। जब एरोसॉल की मात्रा ज्यादा हो जाती है तो बादलों में पानी की भाप का वितरण ज्यादा बूंदों में होता है। इसलिए बूंदें छोटी होती हैं और उनके बड़ी बूंदों में बदलने की संभावना कम होती है। यही छोटी बूंदें बादलों में रह कर छोटे ओलों और यहां तक कि छोटी बर्फ के क्रिस्टल बनाने में सहयोग करती हैं। छोटे ओले और क्रिस्टल के बीच टकराव बादालों के बीच से निचले हिस्से में इन ओलों में ऋणात्मक आवेश ला देता है। वहीं बादलों के ऊपर के हिस्से में धनात्मक आवेश के क्रिस्टल होते हैं।

वैज्ञानिकों का मानना है कि बादलों के दो हिस्सों के बीच आवेश के इस बड़े अंतर की वजह से बिजली चमकने और गिरने जैसी घटनाएं जन्म लेती हैं।लेकिन यदि प्रदूषण कम होता है तब बादलों में बड़ी और गर्म पानी की बूंदें बनती हैं ऐसे में बादलों में बर्फ के कणों की भारी कमी हो जाती है। जिससे आवेश में बड़ा अंतर पैदा नहीं हो पाता है। इसी लिए बादलों से बिजली चमकने या गिरने की घटना देखने को नहीं मिलती है। ऐसा ही कुछ लॉकडाउन के दौरान हुआ होगा। साल 2020 में इंसानी गतिविधियों के थमने से हवा में कम एरोसॉल का उत्सर्जन हुआ था जब पूरी दुनिया में लगभग सभी लॉकडाउन लगने लगा। इससे बहुत ही बड़ी तादाद में ईंधन की खपत में गिरावट हुई और ऑटोमोबाइट ट्रैफिक का एरोसॉल उत्पादन पर गहरा असर होता है। शोधकर्ताओं ने प्रदूषण कम होने के कारण बूंदों का दो तरह की चमकने ये गिरने वाली बिजली में अवलोकन किया। एक जो जमीन पर गिरती है और एक केवल बादलों में ही चमकती है।

एक पद्धति में पाया गया कि मार्च 2020 से मई 2020 की तुलना में साल 2021 के उन्ही महीनों में बिजली की चमक 19 प्रतिशत कम चमकी थी। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि जहां एरोसॉल में भारी कमी हुई वहां बिजली चमकने की घटनों में भी ज्यादा कमी देखने को मिली। बता दें ‎कि कोविड-19 महामारी की वजह से मार्च 2020 से ही दुनिया के कई देशों में एक के बाद एक लॉकडाउन लगने शुरू हो गए थे। इस वजह से कई इंसानी गतिविधियां थम गई थीं जिसका व्यापक असर हुआ था। लोगों ने साफ तौर पर इसके प्रभाव भी देखे।