सिंगरौली का छुहिया माई मंदिर: जहां विज्ञान फेल हो जाता है

 




काल चिंतन कार्यालय

वैढ़न,सिंगरौली। मध्य प्रदेश का सिंगरौली जिला ऊर्जा उत्पादन का केन्द्र है। सिंगरौली एनटीपीसी की एक पावर ग्रिड फेल होती है तो राष्ट्रपति भवन में अंधेरा हो जाता है। उद्योगों को लेकर जिस तरह से सिंगरौली सरनाम है, उसी तरह यह धरती धार्मिक पवित्रता को लेकर भी जानी जाती है। सिंगरौली की आदिवासी धरती पर ऐसे शक्तीस्थल हैं जहां आधुनिक तकनीकी और विज्ञान नतमस्तक हो जाता है। नार्दन कोल फील्ड्स लिमिटेड की अमलोरी परियोजना के अमलोरी गांव में छुहिया माई का मंदिर ऐसा ही एक शक्तिस्थल है। यूं तो सिंगरौली पहाड़ों और जंगलों के बीच बसा है जहां अनादिकाल से पहाड़ों पे जंगलों पर अनेक शक्तिस्थल पाये जाते हैं जिनकी पूजा न जाने कब से होती रही है। शायद ही कोई पहाड़ हो जिसपर किसी देव या देवी का स्थान न पाया जाता हो। जाहिल बाबा, नौगढ़ के डीह बाबा, नौगढ़ के ठाढ़े बाबा, ज्वालामुखी माँ मंदिर, औड़ी के बजरंग बली का मंदिर, सेमरहवा बाबा, शक्तिस्थल आदि अनेक ऐसे स्थान हैं जहां विज्ञान चुप हो जाता है। 

अमलोरी परियोजना के अमलोरी गांव की पहाड़ी पर छुहिया माई का मंदिर स्थापित है। उस पहाड़ी पर मंदिर तक जाने में तकरीबन डेढ़ घंटे लगते हैं। यहां के मूल निवासी आदिवासी, इस मंदिर के लिए पहाड़ी पर चढ़कर  के माँ के दर्शन के लिए जाते हैं। २२ वर्षों से माँ की पूजा अर्चना में जुटे पुजारी जी कम से कम दिन में दो बार इस पहाड़ी को तय करते हैं। बताते हैं कि जब अमलोरी परियोजना क्रियान्वित हो रही थी उस समय आदिकाल से यह छुहिया माई का शक्तिस्थल स्थापित था। इस पहाड़ी के इर्द गिर्द आते ही एनसीएल की सारी मशीने क्षतिग्रस्त हो जाती थीं। जेसीबी जैसी मशीने भी क्षतिग्रस्त हो जाती थीं। कोयला उत्खनन का काम रूक जाता था। फिर थक हारकर एनसीएल प्रबंधन ने स्थानीय ग्रामीणों से बात करने के बाद छुहिया माई के बारे उन्हें जानकारी मिली। फिर जब छुहिया माई का भव्य मंदिर बनवाया गया तब जाकर के कोयले का उत्पादन जारी हो सका और परियोजना का कार्य सफल होने लगा। आज स्थानीय लोगों का कोई भी शुभकाम होता है तो वे सबसे पहले छुहिया माई मंदिर जाकर उनकी आराधना करते हैं।