कब और कैसे मिला हर एक को तिरंगा फहराने का अधिकार?



काल चिन्तन न्यूज

सिंगरौली। आज के इस विश्लेषण में आपको देश के झंडे से जुड़ी कुछ रोचक बातें आपको बताएंगे और इसके साथ ही गणतंत्र दिवस और उसके समारोहों के बारे में भी कुछ अनजानें तथ्यों से रूबरू करवाएंगे। भारत का राष्ट्रीय झंडा देश के हर नागरिक के गौरव और सम्मान का प्रतीक है।जो तिरंगा आज हमारे भारत की आन-बान शान माना जाता है। क्या आप उस तिरंगे के इतिहास को जानते हैं, क्या आपने कभी सोचा कि जिस झंडे को देखकर आज हिन्दुस्तान में रहने वाला हर इंसान गर्व महसूस करता है। वो झंडा कब बनाया गया था और क्यों बनाया गया था। तिरंगे का डिज़ाइन सबसे पहले किस इंसान के दिमाग में आया था? आज के इस विश्लेषण में आपको देश के झंडे से जुड़ी कुछ रोचक बातें बताएंगे और इसके साथ ही गणतंत्र दिवस और उसके समारोहों के बारे में भी कुछ अनजानें तथ्यों से रूबरू करवाएंगे। भारत का राष्ट्रीय झंडा देश के हर नागरिक के गौरव और सम्मान का प्रतीक है। जब भी कोई तिरंगे को फहराता है तो उसके चेहरे पर एक अलग ही चमक होती है। 

झंडे का इतिहास: भारत का पहला राष्ट्रीय ध्वज 1904 में सिस्टर निवेदिता द्वारा डिजाइन किया गया था। यह लाल रंग का झंडा था जिसके किनारों पर पीली धारियां थीं, बीच में एक वज्र था जिसके दोनों ओर वंदे मातरम लिखा हुआ था। 7 अगस्त, 1906 को कोलकाता के पारसी बागान स्क्वायर (ग्रीर पार्क) में पहला तिरंगा झंडा फहराया गया था। इसमें नीले, पीले और लाल रंग के तीन क्षैतिज बैंड थे, जिसमें आठ सितारे उस समय भारत के आठ प्रांतों का प्रतिनिधित्व करते थे और वंदे मातरम शब्द पीले बैंड में अंकित थे। नीचे की लाल पट्टी में सूर्य और एक अर्धचंद्र और तारे को दर्शाया गया है। मैडम भीकाजी कामा ने 22 अगस्त, 1907 को जर्मनी के स्टटगार्ट में इसी तरह का झंडा फहराया था। 1917 में, यूनियन जैक के साथ एक तीसरा झंडा, पांच लाल और चार क्षैतिज बैंड, सात तारे और एक तारे के साथ एक अर्धचंद्र दिखाई दिया। इसे होमरूल आंदोलन के दौरान डॉ. एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने फहराया था।

तिरंगे की कहानी: भारत के लिए झंडा बनाने की कोशिशें हालांकि पहले भी हो चुकी थी। लेकिन तिरंगे की परिकल्पना आंध्र प्रदेश के पिंगली वेंकैया ने की थी। उनकी चर्चा महात्मा गांधी ने 1931 में अपने अखबार यंग इंडिया में की थी। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने वाले वेंकैया की मुलाकात महात्मा गांधी से हुई। उन्हें झंडों में बहुत रूचि थी। गांधी ने उनसे भारत के लिए एक झंडा बनाने को कहा। वेंकैया ने 1916 से 1921 कई देशों के झंडों पर रिसर्च करने के बाद एक झंडा डिजाइन किया। 1921 में विजयवाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में गांधी से मिलकर लाल औऱ हरे रंग से बनाया हुआ झंडा दिखाया। इसके बाद से देश में कांग्रेस के सारे अधिवेशनों में इस दो रंगों वाले झंडे का इस्तेमाल होने लगा। इस बीच जालंधर के लाला हंसराज ने झंडे में एक चक्र चिन्ह बनाने का सुझाव दिया। बाद में गांधी के सुझाव पर वेकैंया ने शांति के प्रतीक सफेद रंग को राष्ट्रीय ध्वज में शामिल किया। 1931 में कांग्रेस ने केसरिया, सफेद औऱ हरे रंग से बने झंडे को स्वीकार किया। हालांकि तब झंडे के बीच में अशोक चक्र नहीं बल्कि चरखा था। 

रंगों का महत्व: ध्वज का केसरिया रंग साहस का प्रतिनिधित्व करता है। सफेद भाग शांति और सच्चाई का प्रतिनिधित्व करता है और अशोक चक्र धर्म या नैतिक कानून का प्रतिनिधित्व करता है। हरा रंग उर्वरता, वृद्धि और शुभता का प्रतिनिधित्व करता है।

कैसे बना देश का झंडा: देश के बीच चरखे की जगह अशोक चक्र ने ले ली। इस झंडे को भारत की आजादीकी घोषणा के 24 दिन पहले 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रुप में अपनाया। देश की स्वतंत्रता के बाद पहले उप राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने चक्र के महत्व को समझाते हुए कहा था कि झंडे के बीच में लगा अशोक चक्र धर्म का प्रतीक है। इस ध्वज की सरपरस्ती में रहने वाले सत्य और धर्म के सिद्धांतों पर चलेंगे। चक्र गति का भी प्रतीक है। भारत को आगे बढ़ना है। ध्वज के बीच में लगा चक्र अहिंसक बदलाव की गतिशीलता का प्रतीक है। 

फ्लैग कोर्ड ऑफ इंडिया: भारतीय ध्वज संहिता, 2002 में सभी नियमों और औपचारिकताओं व निर्देशों को एक साथ लाने के प्रयास किया गया है। झंडा संहिता भारत के स्थान पर भारतीय झंडा संहिता 2002 को 26 जनवरी 2002 से लगू किया गया। सुविधा के लिए भारतीय झंडा संहिता को तीन भागों में बांटा है। संहिता के भाग 1 में राष्ट्रीय ध्वज के सामान्य विवरण शामिल हैं। भाग-2 में आम लोगों, शैक्षिक संस्थाओं और निजी संगठनों के लिए झंडा फहराए जाने से संबंधित दिशा-निर्देश दिए गए हैं। संहिता के भाग-3 में राज्य और केंद्र सरकार तथा उनके संगठनों के लिए दिशा निर्देश दिए गए हैं।

पहले सबको नहीं थी तिरंगा फहराने की आजादी: साल 2002 से पहले भारत की आम जनता केवल गिने-चुने राष्ट्रीय त्योहारों के अवसर पर ही झंडा फहरा सकती थी। इसके लिए विधि विधान की चर्चा प्रतीक और नाम (अनुचित उपयोग की रोकथाम) अधिनियम, 1950 और राष्ट्रीय सम्मान के अपमान की रोकथाम अधिनियम, 1971 (1971 की संख्या 69) में की गई है। श के हर नागरिक को अपना प्यारा तिरंगा फहराने के अधिकार की भी बड़ी दिलचस्प कहानी है। दरअसल, राष्ट्रीय ध्वज के लिए पूर्व सांसद और बिजनेसमैन नवीन जिंदल का जुनून संयुक्त राज्य अमेरिका में टेक्सास विश्वविद्यालय में अपने छात्र जीवन के दौरान शुरू हुआ। 1992 में भारत वापस आने के बाद, नवीन ने अपने कारखाने में पर हर दिन तिरंगा फहराना शुरू कर दिया। उन्हें जिला प्रशासन ने ऐसा करने मना किया और दण्डित करने की चेतावनी भी दी गई। नवीन जिंदल को यह बात अखर गई वह खुद और भारत के नागरिकों को अपने राष्ट्र ध्वज को निजी तौर पर फहराने के अधिकार को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया और अंत में देश की सबसे बड़ी अदालत ने इनके पक्ष फैसला दिया। नवीन जिंदल द्वारा लड़ी गई सात सालों की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद साल 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था जिसमें कहा गया था कि देश के प्रत्येक नागरिक को आदर, प्रतिष्ठा एवं सम्मान के साथ राष्ट्रीय ध्वज फहराने का अधिकार है और इस प्रकार यह प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार बना है। केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने भारतीय झंडा संहिता में 26 जनवरी 2002 को संशोधन किए. इसके जरिए आम जनता को साल के सभी दिनों में झंडा फहराने की अनुमति दी गयी।

भारत अपने 72वें गणतंत्र दिवस समारोह के लिए कमर कस रहा है और समारोहों को नए कोविड-19 प्रोटोकॉल में संशोधिन किया गया है। इस साल 26 जनवरी की परेड के दौरान कम भीड़ और सिर्फ 10 झांकियां नजर आएंगी, लेकिन इससे जश्न कम नहीं होगा।