बच्चे की कमजोर नजर का घर बैठे लगाये पता



लखनऊ। अब नजर कमजोर होने पर बच्चों अस्पताल तक दौड़ लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। स्मार्ट फोन से आंखों की तस्वीर लेकर भी डॉक्टर आंखों की नजर संबंधी बीमारी का पता लगा सकेंगे। स्मार्ट फोन से आंखों की खींची गई फोटो कितनी कारगर है, इस पर केजीएमयू ने शोध शुरू किया है। शुरुआती जांच में करीब 20 फीसदी स्कूली बच्चों को आंखों से संबंधी परेशानी का पता चला है।केजीएमयू नेत्र रोग विभाग काउंसिल ऑफ सांइस एंड टेक्नोलॉजी के प्रोजेक्ट के तहत शोध कर रहा है। स्मार्ट फोन फोटोग्राफी फॉर स्क्रीनिंग अक्यूलर मार्बिटी इन स्कूल चिल्ड्रन के नाम से प्रोजेक्ट शुरू हुआ है। अब तक प्रोजेक्ट के तहत लखनऊ के 50 सरकारी स्कूल के करीब 2500 बच्चों की आंखों की जांच की जा चुकी है। कक्षा तीन से आठ तक के छात्र-छात्राओं को शोध में शामिल किया गया है। इनकी उम्र छह से 12 साल है।

इलाज में देरी घातक: नेत्र रोग विभाग के डॉ. सिद्धार्थ अग्रवाल के मुताबिक कई बार छोटे बच्चे अक्षरों को पहचान नहीं पाते हैं। ऐसे में बीमारी की पहचान कठिन हो जाती है। नतीजतन समय पर नजर संबंधी बीमारी का पता नहीं चल पाता है। देरी से मर्ज की पहचान आंखों की सेहत के लिए घातक है। इससे बीमारी के गंभीर होने का खतरा बना रहता है।

शुरुआत में इलाज आसान: डॉ. सिद्धार्थ ने बताया कि स्मार्ट फोन से आंखों की तस्वीर लेकर बीमारी की पहचान की जा रही है। आंख के पर्दे से रिफ्लैक्शन (रेटिनल ग्लो) की सेहत का आंकलन किया जा रहा है। नजर की कमजोरी का पता लगाने में स्मार्ट फोन की तस्वीर शुरुआती जांच में कारगर साबित हो रही है। अब तक करीब 20 फीसदी बच्चों की नजर कमजोर मिली है। उन्होंने बताया कि जांच के लिए बच्चों का चयन रैंडम किया गया है।