स्टीव हंके ने कहा, मोदी सरकार की कड़े और जरूरी आर्थिक सुधारों में जरा भी रचि नहीं 


नई दिल्ली। भारत को 2020 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में पांच प्रतिशत वृद्धि दर हासिल करने के लिए 'काफी मेहनत' करनी पड़ सकती है। यह बात प्रसिद्ध अमेरिकी अर्थशास्त्री स्टीव हंके ने कही है। उन्होंने कहा कि पिछली कुछ तिमाहियों में आर्थिक वृद्धि दर में काफी गिरावट आई है। इसकी प्रमुख वजह ऋण में कमी आना है जो चक्रीय समस्या है। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत में ऋण की काफी तेज वृद्धि देखने को मिली, लेकिन आज स्थिति यह है कि गैर-निष्पादित आस्तियां (एनपीए) बढ़ रही हैं। विशेषरूप से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का डूबा कर्ज बढ़ रहा है। हंके ने कहा, ''भारत में सुस्ती की वजह ऋण संकुचन है, जो एक चक्रीय समस्या है। 
हंके ने कहा कि भारत पहले से काफी अधिक संरक्षणवाद से घिरा हुआ है। भारत को अभी तक दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था गिना जा रहा था। चालू वित्त वर्ष की सितंबर तिमाही में देश की आर्थिक वृद्धि दर घटकर 4.5 प्रतिशत रह गई है जो इसका छह साल का निचला स्तर है। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार बड़े आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने में विफल रही है। हंके ने मोदी सरकार पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि मोदी सरकार की कड़े और जरूरी आर्थिक सुधारों में जरा भी रचि नहीं है। इसके बजाय मोदी सरकार दो चीजों ..धर्म और जाति... जैसी अस्थिरता और संभावित रूप से विस्फोटक मुद्दों पर ध्यान दे रही है।