सरकार की सुप्रीम कोर्ट में अर्जी- मौत की सजा के मामलों में गाइडलाइंस को दोषी के बजाए पीड़ित को ध्यान में रखते हुए बदलें


नई दिल्ली. निर्भया केस में दोषियों की फांसी में देरी से देश में उपजी नाराजगी के बीच, बुधवार को केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची। गृह मंत्रालय ने अदालत में याचिका दायर करके कहा कि दोषी की मौत की सजा पर सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन खारिज होने के बाद, क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल करने के लिए समय सीमा तय की जानी चाहिए। डेथ वॉरंट जारी होने के बाद 7 दिन के भीतर ही दया याचिका दाखिल करने की इजाजत मिलनी चाहिए। दया याचिका रद्द होने के 7 दिन के भीतर राज्य सरकार और जेल प्रशासन को नया डेथ वॉरंट जारी करके दोषी को फांसी दे देनी चाहिए। याचिका में यह भी कहा गया कि किसी दोषी की फांसी को इसलिए न रोका जाए कि उसी केस के दूसरे दोषियों की रिव्यू/क्यूरेटिव/दया याचिका पर फैसला लंबित है। वर्तमान गाइडलाइंस के मुताबिक, किसी भी दोषी की कोई भी याचिका या मामला लंबित होने पर उस केस से संबंधित अन्य दोषियों को भी फांसी की सजा नहीं दी जा सकती।


पीड़ित को ध्यान में रखकर बदलें गाइडलाइन्स


गृह मंत्रालय ने अपनी याचिका में मौत की सजा के मामलों में कानूनी प्रावधानों को 'दोषी केंद्रित' के बजाए 'पीड़ित केंद्रित' करने की अपील की। इसका मतलब यह है कि मौत की सजा के मामलों में तय गाइडलाइंस को दोषी की जगह पीड़ित को ध्यान में रखते हुए बदला जाए। याचिका में कहा गया- वर्तमान कानून के गाइडलाइंस दोषी को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं। इसके चलते वे सजा टालने के लिए कानूनी प्रावधानों से खिलवाड़ करते हैं। याचिका में मौत की सजा पाने वाले दोषी को मिले अधिकारों पर 2014 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश में बदलाव की मांग की गई। जनवरी, 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था- मौत की सजा पाए दोषी के भी कुछ अधिकार होते हैं और उसकी दया याचिका खारिज होने के 14 दिन बाद ही उसे फांसी दी जाए।


कानूनी प्रक्रिया की समय सीमा तय करने की मांग


याचिका में कहा गया कि दोषी की मौत की सजा पर सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन खारिज होने के बाद, क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल करने के लिए समय सीमा तय की जानी चाहिए। अदालत से यह निर्देश देने की मांग भी की गई कि दोषी का डेथ वॉरंट जारी होने के बाद उसे 7 दिन के भीतर ही दया याचिका दाखिल करने की इजाजत मिलनी चाहिए। दोषी की दया याचिका रद्द होने के 7 दिन के भीतर राज्य सरकार और जेल प्रशासन को नया डेथ वॉरंट जारी करना चाहिए।


एक दोषी के केस की वजह से बाकियों की सजा न रुके


गृह मंत्रालय ने कहा कि अदालत देश के सभी सक्षम कोर्ट, राज्य सरकारों और जेल अधिकारियों को निर्देश दे कि दोषी की दया याचिका खारिज होने के 7 दिनों के भीतर उसे फांसी की सजा दे दी जाए। किसी दोषी की फांसी को इसलिए न रोका जाए कि उसी केस के दूसरे दोषियों की रिव्यू/क्यूरेटिव/दया याचिका पर फैसला लंबित है। वर्तमान गाइडलाइंस के मुताबिक, किसी भी दोषी की कोई भी याचिका या मामला लंबित होने पर उस केस से संबंधित बाकी दोषियों को भी फांसी की सजा नहीं दी जा सकती।


निर्भया केस के दोषियों की फांसी लगातार टल रही


निर्भया के साथ दरिंदगी के चारों दोषियों की फांसी की सजा कानूनी पैंतरों की वजह से लगातार टल रही है। सोमवार को निर्भया के पिता बद्रीनाथ सिंह ने सुप्रीम कोर्ट से दोषियों की तरफ से दाखिल की जा सकने वाली याचिकाओं की संख्या पर निर्देश जारी करने की अपील की थी। उन्होंने कहा था- सुप्रीम कोर्ट तय करे कि एक दोषी कितनी याचिकाएं दाखिल कर सकता है। ऐसा करने से ही महिलाओं को निश्चित समय में न्याय मिल सकता है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने निर्भया केस के एक दोषी पवन गुप्ता की याचिका खारिज की थी। उसने 2012 में हाईकोर्ट में वारदात के समय खुद के नाबालिग होने की याचिका खारिज होने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।


16 दिसंबर 2012 को 6 दोषियों ने निर्भया से दरिंदगी की


16 दिसंबर, 2012 की रात दिल्ली में पैरामेडिकल छात्रा से 6 लोगों ने चलती बस में दरिंदगी की थी। गंभीर जख्मों के कारण 26 दिसंबर को सिंगापुर में इलाज के दौरान निर्भया की मौत हो गई थी। घटना के नौ महीने बाद यानी सितंबर 2013 में निचली अदालत ने 5 दोषियों...राम सिंह, पवन, अक्षय, विनय और मुकेश को फांसी की सजा सुनाई थी। मार्च 2014 में हाईकोर्ट और मई 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा बरकरार रखी थी।


ट्रायल के दौरान मुख्य दोषी राम सिंह ने तिहाड़ जेल में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। एक अन्य दोषी नाबालिग होने की वजह से 3 साल में सुधार गृह से छूट चुका है। इस केस में वारदात के 2578 दिन बाद पहला डेथ वॉरंट जारी हुआ था। दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट ने 7 जनवरी को निर्भया के दोषियों को 22 जनवरी की सुबह 7 बजे फांसी पर लटकाए जाने का डेथ वॉरंट दिया था। 17 जनवरी को नया डेथ वॉरंट जारी किया गया, जिसमें 1 फरवरी को सुबह 6 बजे फांसी देने का आदेश दिया गया।