सहयोगियों के भरोसे भाजपा

दिल्ली विधानसभा चुनाव का मैदान सज गया है। दावेदार मैदान में आ चुके हैं और प्रचार का शोर सुनाई देने वाला है। दिल्ली की कुर्सी किसके हाथ लगेगी, यह पता चलने में समय है, मगर जनता की परीक्षा पर खरा उतरने हर दल कोई कसर बाकी नहीं रखना चाहता। वह भी जिसे सत्ता पाने की कामना है और वह भी जिसके पास सत्ता बचाए रखने की मंशा है। इस चुनाव में कांग्रेस के पास खोने को कुछ नहीं है। दिल्ली की बात करें तो कुछ यही स्थिति भाजपा की है। सो पूरा दारोमदार आप पर है। आप मानकर चल रही है कि जनता फिर भरोसा दिखाएगी तो भाजपा को यकीन है कि दिल्ली की जनता मोदी सरकार के काम के आधार पर उसे सत्ता तक पहुंचा देगी। जो भी हो, यह अगर-मगर में उलझे हुए सवाल हैं।  
भाजपा की बात करें तो विधानसभा चुनाव में उम्मीदों के अनुरूप प्रदर्शन करने में विफल रही भाजपा अब सहयोगियों का सुध ले कर राजग की सेहत सुधारने की तैयारी में है। झारखंड में जदयू-लोजपा को सीटें देने से मना करने के बाद दिल्ली में भाजपा का इन दो दलों के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन इसी आशय का संकेत है। इसी कड़ी में पार्टी दिल्ली विधानसभा चुनाव बाद सहयोगी को राजग का संयोजक बनाएगी। हालांकि जदयू-लोजपा से समझौते को इसी साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव से भी जोड़ कर देखा जा रहा है। दरअसल झारखंड विधानसभा चुनाव में सीटों पर सहमति नहीं बनने के कारण आजसू ने भाजपा से नाता तोड़ा तो पार्टी ने जदयू और लोजपा को तवज्जो नहीं दी।
चुनाव परिणाम प्रतिकूल आने के बाद चर्चा थी कि अगर भाजपा सहयोगियों को महत्व देती तो सकारात्मक परिणाम आ सकते थे। इससे पहले हरियाणा में मनमाफिक नतीजे नहीं आने और महाराष्ट्र में सत्ता गंवाने के बाद सहयोगी दलों ने भाजपा पर हमला बोला था। लोजपा के चिराग पासवान ने राजग में समन्वय नहीं होने का आरोप लगाते हुए तत्काल संयोजक नियुक्त करने की मांग की थी।
दरअसल लोकसभा चुनाव के बाद राजग से शिवसेना और आजसू ने दूरी बनाई है, जबकि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ असम गण परिषद के बाद शिरोमणि अकाली दल ने सीधा मोर्चा खोला है। मुस्लिम वोट छिटकने के डर से लोजपा और जदयू भी असहज हैं। लोजपा ने सीएए पर सही संदेश नहीं देने तो जदयू ने इस कानून पर और चर्चा कराने की मांग की है। जाहिर है कि सहयोगियों के रुख से भाजपा चिंतित है। दिल्ली चुनाव के बाद पार्टी राजग को मजबूत बनाने और सहयोगियों की नाराजगी दूर करने की दिशा में व्यापक पहल करेगी। इसके तहत सहयोगी दल के किसी वरिष्ठ नेता को राजग के संयोजक पद की जिम्मेदारी दी जाएगी। इसके अलावा मंत्रिमंडल विस्तार में भी छूटे सहयोगियों को शामिल किया जाएगा। दिल्ली में जदयू-लोजपा गठबंधन की वजह इसी साल बिहार में होने वाला विधानसभा चुनाव और दलित-पूर्वांचली मतदाता भी हैं। लोजपा के सहारे पार्टी दिल्ली के दलित मतदाताओं को संदेश देना चाहती है, जबकि लोजपा-जदयू के सहारे पूर्वांचली मतदाताओं को। इसके अलावा इस गठबंधन के जरिए पार्टी ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि बिहार में लोकसभा चुनाव की तरह भाजपा-लोजपा-जदयू गठबंधन जारी रहेगा। राज्य में भाजपा-जदयू के बीच समय समय पर सामने आ रहे मतभेद के कारण चुनाव पूर्व गठबंधन पर कयास लगते रहे हैं।
अब देखना है कि दिल्ली में भाजपा द्वारा की जा रही कवायद कितना असर दिखाती है। इस चुनाव पर भाजपा का काफी कुछ दांव पर है। इस चुनाव के परिणाम बिहार और बंगाल का भविष्य तय करेंगे और भाजपा के नए-नवेले अध्यक्ष जेपी नड्डा की शख्सियत पर भी मुहर लगाएंगे।