फैज की नज्म पर विवाद, भाजपा नेता अमित मालवीय बोले- चर्चा की जरूरत नहीं, दोनों अप्रासंगिक


नई दिल्ली । भारतीय उपमहाद्वीप के महान शायर फैज अहमद फैज की नज्म 'हम देखेंगे' पर इन दिनों हंगामा बरपा है। इस विवाद के बीच भाजपा नेता अमित मालवीय ने कहा कि उर्दू और फैज पर चर्चा करने की जरूरत नहीं है। दोनों ही प्रासंगिक नहीं हैं। यह इस्लामिक नारों के इस्तेमाल के बारे में है, जो कि कैंपस में, खासतौर पर अल्पसंख्यक संस्थानों में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में लगाए जा रहे हैं। यह चिंता का विषय है। असल में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-कानपुर (आईआईटी-के) ने एक समिति गठित की है, जो यह तय करेगी कि क्या फैज अहमद फैज की कविता 'हम देखेंगे लाजिम है कि हम भी देखेंगे' हिंदू विरोधी है। फैकल्टी सदस्यों की शिकायत पर यह समिति गठित की गई है। फैकल्टी के सदस्यों ने कहा था कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान छात्रों ने यह 'हिंदू विरोधी गीत' गाया था।'
समिति इसकी भी जांच करेगा कि क्या छात्रों ने शहर में जुलूस के दिन निषेधाज्ञा का उल्लंघन किया, क्या उन्होंने सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट की और क्या फैज की कविता हिंदू विरोधी है। कविता इस प्रकार है, "लाजिम है कि हम भी देखेंगे, जब अर्ज-ए-खुदा के काबे से। सब भूत उठाए जाएंगे, हम अहल-ए-वफा मरदूद-ए-हरम, मसनद पे बिठाए जाएंगे। सब ताज उछाले जाएंगे, सब तख्त गिराए जाएंगे। बस नाम रहेगा अल्लाह का। हम देखेंगे।" इसकी अंतिम पंक्ति ने विवाद खड़ा कर दिया है।