नड्डा की राह कठिन

जगत प्रकाश यानी जेपी नड्डा अब भाजपा के नए अध्यक्ष हैं। उनका कार्यकाल 2022 तक होगा। पार्टी के संगठन चुनाव प्रभारी राधामोहन सिंह ने उनके निर्विरोध निर्वाचन की घोषणा करते हुए कहा, जगत प्रकाश नड्डा 2019 से 2022 के लिए सर्वानुमति से अध्यक्ष चुन लिए गए हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, निवर्तमान अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह समेत पार्टी के तमाम नेताओं ने नड्डा को बधाई दी। हालांकि, नड्डा के सामने आसान राह नहीं है। नड्डा के सामने कई चुनौतियां होंगी। खासतौर पर पूर्व अध्यक्ष अमित शाह के करिश्मे को बरकरार रखना। छह साल के कार्यकाल के दौरान अमित शाह की अगुवाई में भाजपा केंद्र के साथ कई राज्यों के चुनावों में जीती। अब जेपी नड्डा से पार्टी के नेता करिश्मे की आस लगाए हुए हैं। नड्डा के अध्यक्षीय कार्यकाल के दौरान दिल्ली, बिहार, पश्चिम बंगाल का चुनाव होगा। यह तीनों राज्य भाजपा के लिए खास महत्व रखते हैं। इसके बाद उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड समेत कई प्रदेशों में चुनाव होगा, जिसमें भजपा के पास अपनी सत्ता को बचाने की चुनौती होगी। नड्डा पहली बार साल 1993 में हिमाचल प्रदेश की विधानसभा के सदस्य चुने गए थे। इसके बाद वे प्रदेश सरकार में मंत्री भी रहे और सांसद रहते केंद्र सरकार में भी मंत्री बने। अमित शाह के मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद उन्हें पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया और अमित शाह अध्यक्ष के पद पर बने रहे, लेकिन कई राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में अपना पुराना प्रदर्शन बरकरार नहीं रख पाई। नड्डा अब पूर्णकालिक अध्यक्ष बन गए हैं। नड्डा का भाजपा के एक आम कार्यकर्ता से विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के हाई-प्रोफाइल नेता बनने का सफर काफी लंबा रहा है, लेकिन असल चुनौती अब उनके सामने होगी। अमित शाह ने भाजपा को जिस जगह लाकर खड़ा किया है पार्टी को वहां से आगे ले जाने और दक्षिण भारत में कमल खिलाने की चुनौती है तो पूर्वात्तर के किले को अब बचाए रखने का भी चैलेंज होगा। अमित शाह ने भाजपा अध्यक्ष रहते हुए पार्टी को जिस मुकाम पर पहुंचाया उसे बनाए रखना जेपी नड्डा के लिए एक अध्यक्ष के तौर पर चुनौतीपूर्ण काम रहेगा। अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा ने देश ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश सहित बड़े राज्यों में जीत का परचम फहराया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में जब कुछ लोग भाजपा की हार की भविष्यवाणी कर रहे थे तब अमित शाह ने 300 प्लस सीटें जीतने का दावा किया था और उसे अमलीजामा पहनाने में कामयाब रहे। इसके अलावा अमित शाह ने 2014 से लेकर अभी तक पार्टी को नई बुलंदी पर पहुंचाया है। उत्तर प्रदेश में 14 साल के सत्ता के वनवास को खत्म किया तो पूर्वोत्तर के राज्यों में कमल खिलाया। अब जब पार्टी की कमान नड्डा के हाथों में है तो इनके सामने बीजेपी को शीर्ष पर बनाए रखने के साथ-साथ खुद को एक सशक्त और दमदार अध्यक्ष के रूप में पेश करने की चुनौती होगी। 
भाजपा अध्यक्ष की कमान मिलने के बाद जेपी नड्डा की पहली अग्निपरीक्षा दिल्ली विधानसभा चुनाव में होनी है। भाजपा पिछले 21 साल से दिल्ली की सत्ता से बाहर है। ऐसे में नड्डा के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को दिल्ली की सत्ता में वापसी कराने की है। नड्डा के नेतृत्व में ही बिहार और पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव होने हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ छोड़ जाने के बाद बिहार में भाजपा के सामने जेडीयू के साथ गठबंधन को बनाए रखने की चुनौती है। बिहार में इसी साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं जबकि 2015 के चुनाव में नीतीश कुमार ने आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और जीत दर्ज की थी। हालांकि नीतीश ने डेढ़ साल बाद आरजेडी से नाता तोड़ लिया और भाजपा के साथ फिर से नई सरकार बना ली थी, लेकिन  भाजपा और जेडीयू नेताओं के बीच लगातार तल्खियां सामने आती रहती हैं। ऐसे में सीट शेयरिंग से लेकर राजनीतिक एजेंडा तय कर साथ चुनाव लडऩे की बड़ी चुनौती है।
मोदी सरकार एक के बाद एक बड़े सियासी फैसले ले रही है। इसके अलावा सरकार की ओर से कई योजनाओं की आधारशिला रखी जा रही है। ऐसे में इन योजनाओं को लोगों तक पहुंचाने और जमीन पर उतारने की जिम्मेदारी बीजेपी के अध्यक्ष के तौर पर जेपी नड्डा की होगी। सीएए को लेकर एक तरफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं तो बीजेपी घर-घर जनजागरण अभियान चला रही है। मोदी सरकार पर संविधान को बदलने और खत्म करने के आरोप लगाए जा रहे हैं, ऐसे में जेपी नड्डा के सामने इसे काउंटर करने की भी चुनौती होगी। ऐसे में देखना है कि कैसे जेपी नड्डा सरकार की योजनाओं को लोगों के बीच ले जाते हैं।