कब रुकेगा हादसों का सिलसिला


किसी भी हादसे का सबक यह होना चाहिए कि वह भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचाव का आधार बने। लेकिन रेल महकमे को शायद इस बात से बहुत सरोकार नहीं है कि ट्रेन हादसों पर काबू पाने के पर्याप्त इंतजामों को प्राथमिकता में शुमार किया जाए। माना कि पिछले कुछ वर्षों में रेल हादसों में कमी आई है और अब रेलवे हादसों को रोकने न सिर्फ गंभीर है बल्कि नई तकनीक का प्रयोग भी कर रहा है। लेकिन इन सबके बाद भी अगर कोई हादसा हो जाता है तो यह पूरी तैयारी को सवालों के घेरे में खड़ा कर देता है। अभी कुछ दिनों पहले ही रेल मंत्री पीयूष गोयल ने सुरक्षा और संरक्षा को लेकर तमाम दावे किए थे, मगर गुरुवार को कटक में हुए रेल हादसों ने दावों पर सवाल उठा दिए। 
बता दें कि ओडिशा के कटक में गुरुवार सुबह भारी कोहरे की वजह से हुए ट्रेन हादसे में बड़ी संख्या में लोग घायल हो गए। इनमें से 6 की हालत नाजुक है। घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है। कोहरे की वजह से घटनास्थल पर रेस्क्यू ऑपरेशन में भी देरी आई। ट्रेन मुंबई से भुवनेश्वर जा रही थी। खबर मिली है कि एक्सप्रेस ट्रेन के मालगाड़ी से टकराने की वजह से ट्रेन पटरी से उतर गई। कहा जा रहा है कि ये ट्रेन धुंध की वजह से मालगाड़ी से टकरा गई थी। अब इस हादसे को मौसम की मार मानें या मानव जनित, जांच के बाद पता चलेगा, मगर अभी तो हादसा हुआ है और यही माना जाना चाहिए। 
यह बेवजह नहीं है कि एक ही प्रकृति की दुर्घटनाएं बार-बार होती हैं और उनमें लोगों की जान जाती है, रेलवे का भी भारी नुकसान होता है।   वह लगातार हादसों में सिर्फ एक कड़ी है। अब एक आम हो चुकी रिवायत के मुताबिक मृतकों और घायलों के लिए मुआवजे और इलाज की घोषणा के साथ-साथ भविष्य में ऐसे हादसों पर लगाम लगाने के आश्वासन दिए जाएंगे। लेकिन इन आश्वासनों की जमीनी सच्चाई यह है कि एक दुर्घटना के बारे में लोग भूल भी नहीं पाते कि फिर कोई नया हादसा सामने आ जाता है। हो सकता है कि ताजा दुर्घटना में मरने वालों और हताहतों की तादाद बड़ी नहीं मानी जाएगी, लेकिन किसी भी हादसे में जान गंवाने वालों की संख्या कितनी भी क्यों न हो हो, उसका महत्व समान माना जाना चाहिए। सवाल है कि यात्री जब सुरक्षित सफर के मकसद से ट्रेन का सहारा लेते हैं और इसकी पूरी कीमत चुकाते हैं, तो गंतव्य तक पहुंचने के बीच वे जान जाने के जोखिम से क्यों गुजरें? विडंबना यह है कि पिछले कुछ समय से जितनी भी रेल दुर्घटनाएं हो रही हैं, उनमें से ज्यादातर में कारण चलती ट्रेन का पटरी से उतर जाना है। अनेक अध्ययनों में यह तथ्य दर्ज किया जा चुका है कि पटरियों पर ज्यादा दबाव पडऩे की वजह से वे समय से पहले कमजोर पड़ जाती हैं। इसके बावजूद पटरियों पर ट्रेनों के दबाव को ध्यान में रखते हुए सुरक्षा इंतजामों को पुख्ता करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए जा पाते।
सवाल है कि ट्रेनों के संचालन से जुड़े बुनियादी पहलुओं पर ध्यान देना और उसे पूरी तरह सुरक्षित बनाना किसकी जिम्मेदारी है। पटरियों की गुणवत्ता से लेकर रेलवे क्रॉसिंग पर कर्मचारी के मौजूद नहीं होने जैसी दूसरी तमाम वजहों से अक्सर रेल दुर्घटनाएं होती रही हैं। लेकिन इसके लिए जिम्मेदार बड़ी खामियों को पूरी तरह दुरुस्त करने के बजाय सरकार सुरक्षा के नाम पर यात्रा को ज्यादा से ज्यादा महंगी बनाने और बुलेट ट्रेन या दूसरी शानो-शौकत वाली ट्रेनों के परिचालन के लिए बढ़-चढ़ कर दावा करने में लगी है। रेलगाडिय़ों का सफर आम लोगों के लिए किस कदर मुश्किलों से भरा हो गया है, यह किसी से छिपा नहीं है। अपने गंतव्य तक जाने के लिए टिकट मिल पाने से लेकर समय पर कहीं पहुंच पाना अपने आप में एक आश्चर्य जैसा हो गया है। इसमें अब सफर के दौरान हादसों की वजह से जान पर जोखिम एक बड़ा सवाल है।