जेएनयू का गुस्सा


जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में रविवार शाम बड़ी हिंसा हुई। लाठी-डंडे, हॉकी स्टिक से लैस नकाबपोश हमलावरों ने यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स और टीचरों को बेरहमी से पीटा। इसमें 25 से ज्यादा छात्र-टीचर घायल हो गए। यह घटना बताती है कि हमारे देश के शिक्षक संस्थानों में सुरक्षा का क्या हाल है। आए दिन कॉलेज में मारपीट, हॉस्टलों में अवैध गतिविधियां संचालित हो रही हैं। प्रशासन तमाशा देख रहा है। आज जिस जेएनयू हिंसा को लेकर पूरे देश में बवाल मचा है, उसमें जेएनयू प्रशासन की तरफ किसी की नजर नहीं है। आखिर क्यों। कॉलेज परिसर में नकाबपोश लोग अगर घुसे तो यह पुलिस की नाकामी नहीं, जेएनयू प्रशासन की है। दिल्ली पुलिस की गलती यह है कि वह समय पर नहीं पहुुंची। अगर घटना की जानकारी मिलते ही पुलिस मौके पर आती तो शायद बवाल इतना बड़ा नहीं होता और बदमाशों को पकड़ भी लिया जाता। कहा जा रहा है कि यूनिवर्सिटी में खुलेआम घूमते और तोडफ़ोड़ करते नकाबपोशों की तस्वीरें सामने आ चुकी हैं। ये लोग दिन की रोशनी में डंडे लेकर घूमते दिखे। लेकिन ये नकाबपोश कौन थे और कहां से आए थे इसका जवाब दिल्ली पुलिस और जेएनयू प्रशासन को जल्द से जल्द सामने लाना होगा। सवाल फिर वही कि जेएनयू प्रशासन क्या कर रहा था। जेएनयू के गेटों पर कड़ी सुरक्षा रहती है, कोई भी बाहरी शख्स कैंपस में आसानी से दाखिल नहीं हो सकता है। छात्रों को भी आई कार्ड देखने के बाद ही प्रवेश मिलता है। अगर ये लोग बाहरी थे तो इतनी बड़ी तादाद में लाठी-डंडों और रॉडों के साथ कैसे और कहां से यूनिवर्सिटी में घुस आए। इसका जवाब यूनिवर्सिटी प्रशासन को देना ही होगा। इतनी देर तक कैंपस के अंदर हंगामा और स्टूडेंट्स के साथ मारपीट होती रही, इस दौरान यूनिवर्सिटी प्रशासन क्या कर रहा था। खासतौर से कैंपस में बड़ी तादाद में सिक्योरिटी गार्ड्स तैनात रहते हैं, वे सब इस दौरान क्या कर रहे थे। उन्होंने हमलावरों को रोकने या पकडऩे की कोशिश क्यों नहीं की। बहरहाल, जेएनयू में हुई हिंसा में छात्रसंघ अध्यक्ष आईशी घोष समेत 25 से ज्यादा छात्र और टीचर गंभीर रूप से घायल हुए, जिन्हें एम्स और सफदरजंग में भर्ती कराया गया। घटना के 17 घंटे बाद एफआईआर दर्ज हो पाई, मगर राजनीतिक बयानबाजी लगातार तेज होती जा रही है।  कांग्रेस और लेफ्ट के नेताओं ने हिंसा के लिए केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। वहीं, भाजपा ने इस मामले में राजनीति न करने की सलाह दी है।  
पुलिस कह रही है कि नकाबपोश युवकों की पहचान हो चुकी है, उन्हें जल्द गिरफ्तार किया जाएगा। गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्लनी के उप-राज्यपाल अनिल बैजल और दिल्ली पुलिस कमिश्नर से बात कर हिंसा पर तत्काल रिपोर्ट मांगी है। अगर पूरे विवाद पर नजर डालें तो फीस बढ़ोतरी के बाद प्रदर्शनों के बीच जेएनयू प्रशासन ने रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया शुरू कर दी थी और 5 जनवरी को उसकी आखिरी तारीख थी। हालांकि शनिवार को प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने रजिस्ट्रेशन के लिए जरूरी इंटरनेट और सर्वर के तार काट दिए, जिससे रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया ठप हो गई। जब कुछ छात्रों ने इस काम का विरोध किया तो कथित तौर पर उनके साथ मारपीट हुई और फिर फीस बढ़ोतरी के खिलाफ हो रहा प्रदर्शन एबीवीपी बनाम लेफ्ट में बदल गया। रविवार शाम से ही यह प्रदर्शन उग्र हो गया और नकाबपोश बदमाशों के आने के बाद भीड़ हिंसक हो गई। इस दौरान छात्र, टीचर सबकी पिटाई हुई।  छात्रों ने बताया कि हमलावर लड़कियों के हॉस्टल में हमलावर पहुंच गए और दरवाजे खटखटाने लगे। कई हॉस्टल में जमकर तोडफ़ोड़ की गई। छात्रों का कहना है कि हमलावरों की संख्या 200 से ज्यादा थी। आरोप है कि अलग-अलग गेट से जेएनयू में पढऩे वाले एबीवीपी के कार्यकताओं ने उन्हें एंट्री करवाई। छात्रों ने सोशल मीडिया पर वॉट्सएप ग्रुप की चैट भी शेयर की है, जिसमें कैंपस में घुसने और स्टूडेंट्स लीडर्स को पीटने का प्लान बनाया गया है। हालांकि, यह सही है या फेक, यह पता नहीं लगा है। एक छात्र का कहना है हमलावरों ने सुबह से तैयारी की थी, दिन में पेरियार हॉस्टल के पास ये लोग नजर भी आए। दिन में प्रशासन से भी शिकायत की गई, लेकिन रविवार का बहाना देते हुए कोई कार्रवाई नहीं की गई। हैरानी की बात है कि यहां पुलिस सुबह से ही मौजूद थी, लेकिन हमला होते ही यहां से चली गई।