जनसंख्या गिनने का आधार

एनआरसी और सीएए पर मचे बवाल के बीच केंद्र की मोदी सरकार ने जनगणना से जुड़े राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) की समीक्षा कर इसे और प्रासंगिक बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। इसी साल अप्रैल से सितंबर के बीच होने वाली इस जनगणना पर 8,500 करोड़ रुपए प्रत्यक्ष रूप से खर्च होने की संभावना है। इसके अतिरिक्त जनगणना में लाखों शासकीय अधिकारियों और कर्मचारियों के खर्च इससे10 गुना अधिक होंगे। सरकार कह रही है कि एनपीआर का उद्देश्य देश के प्रत्येक सामान्य निवासी का एक व्यापक पहचान डेटाबेस तैयार करना है। एनपीआर के लिए एक सामान्य निवासी वह व्यक्ति है जो कम से कम छह महीने या उससे ज्यादा समय के लिए स्थानीय क्षेत्र में निवास कर रहा है, या वह अगले छह महीने या उससे अधिक समय के लिए निवास करने की मंशा रखता है। भारत के प्रत्येक सामान्य निवासी के लिए एनपीआर में पंजीकरण कराना अनिवार्य है। सरकार कह रही है कि इसके लिए लंबा फॉर्म या प्रपत्र नहीं होगा। बल्कि एक मोबाइल एप होगा...जो स्व-घोषणा की सुविधा प्रदान करता है। किसी भी दस्तावेज की आवश्यकता नहीं है। कोई प्रमाण आवश्यक नहीं है। किसी बायोमेट्रिक की आवश्यकता नहीं है। लेकिन खर्च होंगे 8,500 करोड़ रुपए। सवाल यह नहीं है कि जनसंख्या रजिस्टर अपडेट न किया जाए। बिल्कुल किया जाना चाहिए। हर देश करता है। मगर भारत में बात कुछ अलग है। मोदी सरकार ने 2014 में सत्ता संभालने के बाद से आधार कार्ड को लेकर जिस तरह की गंभीरता दिखाई है, उसे क्यों नहीं जनसंख्या का आधार बना देना चाहिए। इससे पैसा भी बचेगा और समय भी। देश में आपाधापी का जो माहौल है, उससे निजात भी। देश में आज 90 फीसदी आबादी के पास आधार कार्ड है। इसे जनसंख्या के हिसाब से देखें तो कुल 125 करोड़ लोग आधार युक्त हैं। ऐसा सरकार ने संसद में बताया है। सरकार का कहना है कि शुरुआत से लेकर अब तक सत्यापन सेवाओं के लिए 37 हजार करोड़ बार आधार का उपयोग किया गया है। सरकार ने आधार कार्ड को लेकर जिस तरह से देशवासियों पर दबाव बनाया उसे जनसंख्या के लिए खारिज करना सही नहीं होगा। जनसंख्या रजिस्टर में सरकार जिन जानकारियों को मांगेगी, उनमें आपका नाम और आपके माता-पिता का नाम और आपके पति या पत्नी का नाम, साथ ही साथ लिंग, जन्म तिथि, जन्म स्थान, राष्ट्रीयता (घोषित), स्थायी और वर्तमान पता (यदि कोई है तो), वहां रहने या निवास करने की अवधि, व्यवसाय और शैक्षणिक योग्यता जैसी बुनियादी जानकारी आधार पंजीयन में भी शामिल है। एनपीआर को स्थानीय (गांव/ उप नगर), उप जिला, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर नागरिकता कानून 1955 व नागरिकता नियम, 2003 के तहत तैयार किया जाएगा। देश के सभी नागरिकों का इसमें पंजीकरण अनिवार्य है। 
इस सारी जानकारी के साथ अन्य महत्वपूर्ण जानकारी आधार कार्ड बनाते समय भी देनी पड़ती है। आधार नंबर जारी करने पर पिछले आठ सालों के दौरान 9,000 करोड़ से भी अधिक राशि खर्च की जा चुकी है। 2009-10 से लेकर 2017-18 तक आधार का कुल खर्च 9,055.73 करोड़ रुपए रहा है। इसमें 3,819.97 करोड़ रुपए पंजीकरण पर और 1,171.45 करोड़ रुपए लॉजिस्टिक (प्रिंटिंग और आधार पत्र का डिस्पैच) पर खर्च किए गए। आधार पंजीयन से जन्म मृत्यु पत्र जो डिजिटल बन रहे हैं। यदि इस पोर्टल को शामिल कर दिया जाता है। ऐसी स्थिति में सरकार हर साल जनसंख्या के आंकड़े जारी कर सकती है। एक ही तरह की जानकारी बार बार जुटाने का कोई औचित्य नही है। घर घर जाकर जनसंख्या की जानकारी एकत्रित करना 7 दशक पुराना तरीका है। 21वीं सदी में आधार पंजीयन के बाद अब घर घर जाकर जनगणना करना मूर्खता ही मानी जाएगी।