देश की दयनीय स्वास्थ्य व्यवस्था और सरकार की प्राथमिकताएं


अभी देश  गोरखपुर के बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज में हुई उस त्रासदी को भूला नहीं है जबकि वर्ष 2017 में  इसी अस्पताल में इंसेफ़ेलाइटिस की बीमारी की वजह से अगस्त 17 में 418, सितम्बर में 431 और अक्तूबर17 के महीने में 457 तथा 2017 के ही नवम्बर माह में 266 बच्चों की मौत की ख़बरों ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के गृह नगर में हुए इस 'शिशु नरसंहार' के लिए बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉक्टर राजीव मिश्र, इंसेफ़ेलाइटिस वॉर्ड के प्रभारी डॉ कफ़ील ख़ान, एनेस्थीसिया विभाग के प्रमुख और ऑक्सीजन प्रभारी डॉ सतीश कुमार,चीफ़ फ़ार्मेसिस्ट गजानन जायसवाल,अकाउंटेंट उदय प्रताप शर्मा,संजय कुमार त्रिपाठी,सुधीर कुमार पांडेय,ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कम्पनी पुष्पा सेल्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक मनीष भंडारी तथा पूर्व प्राचार्य डा. राजीव मिश्र की पत्नी डॉ पूर्णिमा शुक्ला को आरोपी ठहराया गया था। इनमें अधिकांश लोगों को आरोपमुक्त भी किया जा चुका है। मोटे तौर पर इस घटना का कारण यह बताया गया था कि ऑक्सीजन की कमी के कारण यह मौतें हुईं। ऑक्सीजन की कमी का कारण यह बताया गया कि बीमार बच्चों की बढ़ती संख्या के मुक़ाबले ऑक्सीजन के स्टॉक में कमी आ गयी। ऑक्सीजन के स्टॉक में कमी का कारण यह बताया गया की ऑक्सीजन की आपूर्तिकर्ता फ़र्म ने ऑक्सीजन के पिछले बक़ाया पैसे न मिल पाने की वजह से ऑक्सीजन की आपूर्ति ही रोक दी थी। जिसका नतीजा 'मासूम शिशुओं के नरसंहार' के रूप में सामने आया।  इसी प्रकार बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर में 2019 में चमकी अथवा अक्यूट इन्सेफ़लाइटिस सिंड्रोम बीमारी के चलते सैकड़ों बच्चे यहाँ भी काल के गाल में समा गए। 
अब एक बार फिर राजस्थान व गुजरात जैसे राज्यों से सैकड़ों की संख्या में मासूम नौनिहालों के दम तोड़ने की ख़बरें आ रही हैं। ज़ाहिर हैं यहाँ भी पूर्व की तरह ही कुछ सरकारी अधिकारीयों,कर्मचारियों अथवा ठेकेदारों को ही ज़िम्मेदार ठहरा कर अपनी बुनियादी ज़िम्मेदारी से मुंह मोड़ लिया जाएगा। जिस प्रकार गोरखपुर के बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज में हुई बच्चों की मौत के लिए 2017 में विपक्षी नेता योगी आदित्य नाथ से मुख्यमंत्री पद छोड़ने की मांग कर रहे थे तथा 2019 में नितीश कुमार से ' मुज़फ़्फ़रपुर शिशु नरसंहार' के लिए त्याग पत्र मांग रहे थे, ठीक उसी प्रकार राजस्थान में कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार को कोटा व बाड़मेर में होने वाली बच्चों की मौतों का ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है तथा गुजरात में राजकोट व अहमदाबाद में होने वाली बच्चों की मौतों के लिए भारतीय जनता पार्टी की विजय रुपानी सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है। एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करने व एक दुसरे को ज़िम्मेदार ठहराने की इस 'राजनैतिक परम्परा ' के बावजूद इस बात का भी यक़ीन रखिये की जिस प्रकार गोरखपुर में 2017 के बाद 2019 में  मुज़फ़्फ़रपुर हुआ फिर आज 2020 में कोटा व बाड़मेर तथा राजकोट व अहमदाबाद से सैकड़ों की संख्या में बच्चों की मौतों की ख़बरें आ रही हैं, इस बात की कोई गारंटी नहीं कि आने वाले वर्षों में इस प्रकार के हादसे नहीं होंगे। 
दूसरी तरफ़ देश की मोदी सरकार भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी वाला देश बनाने की इच्छुक है तथा मोदी के सपनों के 5 ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी वाले इस देश में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ उत्तर प्रदेश की ओर से एक ट्रिलियन डालर की जी डी पी की आहुति डालना चाह रहे हैं। क्या देश के विभिन्न राज्यों में हो रहे 'शिशु नरसंहारों ' की ख़बरें सुनने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि नेताओं के यह ख़याली पुलाव तर्क संगत हैं ? इस देश के अधिकांश नेताओं व राजनैतिक दलों की प्राथमिकताएं क्या हैं यह जानकर स्वयं समझा जा सकता है कि देश को 5 ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी का सपना दिखाना महज़ एक मज़ाक़ के सिवा और कुछ नहीं। हमारे देश के नेताओं की प्राथमिकताओं में जनता के टैक्स के पैसों पर बेतहाशा विदेश यात्राएं,भारत-पाकिस्तान व हिन्दू मुस्लिम की परिचर्चा में देश को उलझाए रखना,जनप्रतिनिधियों की तनख़्वाहें व भत्ते बढ़ाना,जे एन यू के मुख्य द्वार पर टैंक खड़ा कर लोगों में ऐसी 'राष्ट्रभक्ति' जगाना जिसका उदाहरण इन दिनों देखा जा रहा है। जनता के पैसों से सरकारी योजनाओं के प्रचार प्रसार पर सैकड़ों करोड़ रूपये प्रति वर्ष ख़र्च करना,सी ए ए व एन आर सी जैसे मुद्दों पर देश को विभाजित करना,मंदिर मस्जिद,गऊ माता व राष्ट्रवाद जैसे ग़ैर जनसरोकार के मुद्दों को उछालते रहना, अपने राजनैतिक विरोधियों को पाकिस्तानी,राष्ट्रविरोधी तथा देशद्रोही बताने पर अपनी पूरी ऊर्जा ख़र्च करना,स्वास्थ्य व शिक्षा के बजट पर कम परन्तु रक्षा बजट पर अधिक पैसे ख़र्च करना,सरदार पटेल की विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा बनवाना,अयोध्या में दीपोत्सव का गिन्नीज़ वर्ल्ड रिकार्ड बनाना,कांवड़ियों पर पुष्प वर्षा कर सस्ती लोकप्रियता हासिल करना जैसी अनेक बातें शामिल हैं। 
इनमें कहीं भी यह व्यवस्था नहीं है कि देश के सभी राज्यों के सभी अस्पतालों विशेषकर सभी सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर्स व नर्सों सहित पूरे स्टाफ़ का अनुपात उस अस्पताल में उपलब्ध बेड्स के अनुपात के अनुसार हो। अस्पताल में हर प्रकार की ज़रूरी मशीनों से लेकर उनके ऑपरेटर्स तक की सारी सुविधाएं मौजूद हों। सभी वेंडर्स को समय पर पैसे दिए जाएं ताकि कोई ठेकेदार यह कहने वाला न हो कि 'चूँकि सरकार ने पैसे नहीं दिए लिहाज़ा हमने ऑक्सीजन अथवा किसी भी जीवनरक्षक सामग्री की आपूर्ति रोक दी'। दरअसल जो बच्चे हमारे देश का भविष्य हैं जिन बच्चों के हाथों में हमें अपने देश की बागडोर सौंपनी है उनके जीवन की रक्षा के लिए तो सरकार के पास कोई गंभीरता नहीं परन्तु स्वयं को सत्ता में कैसे लाना है या कैसे सत्ता में बरक़रार रखना है इसके लिए तो सारे यत्न कर लिए जाते हैं। अपने विपक्षियों को कैसे ज़लील करना है और कैसे उनके मुंह पर कीचड़ लपेटना है यह हुनर व इसकी युक्तियाँ इन ज़मीर फ़रोश नेताओं को बख़ूबी मालूम हैं। परन्तु भविष्य में देश का कोई नौनिहाल अपनी माँ की गोद में इस तरह बेबसी की मौत न मरे इस पर न कोई प्रतिबद्धता न गारंटी। यदि आप आजकल भी सरकारी व विपक्षी नेताओं की बयान बाज़ियां व इन पर आधारित टी वी डिबेट देखें तो उनकी टी आर पी की सूची में जे एन यू की हिंसा,देश व्यापी छात्र आंदोलन,अमेरिका ईरान के मध्य संभावित युद्ध ,सी ए ए व एन आर सी जैसे मुद्दे सर्वोपरि नज़र आएँगे जबकि गुजरात व राजस्थान में होने वाली नौनिहालों की मौतें तीसरे व चौथे नंबर पर दिखाई देंगी या फिर बिल्कुल ही ग़ायब हो चुकी होंगी। देश की दयनीय स्वास्थ्य व्यवस्था के मध्य सरकार की उपरोक्त प्राथमिकताएं ही वास्तव में स्वास्थ्य विभाग व अस्पतालों की लापरवाही का सबसे बड़ा कारण है। यदि हम अपने बच्चों की जान बचा पाने तक की स्थिति में नहीं हैं और बातें हम  5 ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी की करते हैं तो शायद हमसे बड़ा झूठा,देश व दुनिया को गुमराह करने वाला तथा वास्तविकताओं पर पर्दा डालने वाला और कोई नहीं।