दहशत के साये में जी रहे बाणसागर परियोजना के कर्मचारी  


शहडोल। जिले की बाणसागर परियोजना के कर्मचारी आवास अत्यंत जर्जर हो गए हैं। इनमें से कई आवास खाली पड़े हैं और जिन आवासों में कर्मचारी रह रहे हैं वह कभी भी धाराशायी हो सकते हैं। इन आवासों में डर के साये के बीच परियोजना के सैकड़ों कर्मचारी व उनका परिवार रह रहा है। बताया जाता है कि मरम्मत के लिए कुछ साल पहले डेढ़ करोड़ रुपये आये भी थे लेकिन उससे कर्मचारी आवासों की बजाय अधिकारियों के बंगलों की मरम्मत करा ली गई। 
प्राप्त जानकारी के मुताबिक बाणसागर परियोजना में जो आवास बने हैं वह 1978 में जब परियोजना का काम शुरु हुआ था तब बनाए गये थे। इन आवासों की उम्र 20 साल थी जो बहुत पहले ही पार हो चुकी है। इधर आवासों की मरम्मत भी नहीं कराई जा रही है जिसके कारण आवास अत्यंत जर्जर हो चुके हैं। कुछ कर्मचारी किराये के मकानों में रहने लगे हैं या फिर परियोजना की भूमि में ही आवास बना लिया है। वहां पर लगभग एक हजार कर्मचारियों के आवास बने थे जिसमें से 100 आवास ऐसे हैं जो गिर गए या उनकी छप्पर उड़ गई है। कई आवासों की दीवार भी गिर गई है। कुछ आवासों में अवैध रूप से कब्जा भी कर लिया गया है और वहां आलीशान मकान बन गए हैं। 
झूठ का सहारा 
परियोजना के अधिकारियों के आवासों की बात छोड़ दें तो फजीहत केवल छोटे कर्मचारियों की हो रही है जो जर्जर आवासों में रहने के लिए मजबूर हैं। ऐसे आवासों में कर्मचारी रह रहे हैं जो कभी भी धराशायी हो सकते हैं। सूत्र बताते हैं कि कुछ साल पहले कर्मचारियों के आवासों की मरम्मत के लिए 01 करोड़ 47 लाख रुपए आया था जिसमें रीवा के किसी ठेकेदार द्वारा अधिकारियों के आवासों की मरम्मत का काम पूरा कर दिया गया। उस वक्त मजेदार बात यह रही कि यह भी रिपोर्ट दे दी गई कि सभी आवास दुरूस्त हो गए हैं। 
बजट का अभाव 
एक तरफ परियोजना के अधिकारियों के द्वारा यह कहा जाता है कि अब ऊपर से ही सुविधाएं बंद कर दी गई हैं। वहीं अधिकारियों की सुविधाओं में कोई कटौती नहीं है। इनके आवास, बगिया व अन्य सुविधाएं चकाचक हैं। अधिकारियों के आवासों में पांच से दस कर्मचारियों की ड्यूटी लगी है जो बंगलों में अधिकारियों का खाना बनाने, पोछा लगाने, बगिया सींचने एवं पालतू कुत्तों को घूमाने-फिराने जैसे काम कर रहे हैं। इन सबका वेतन शासन भर रही है। वहीं कर्मचारियों के आवास की मरम्मत की बात आती है तो पैसे का रोना रोया जाता है।