उद्धव ठाकरे के शपथ ग्रहण समारोह में इस वजह से शामिल नहीं हुए राहुल और सोनिया


महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाना कांग्रेस की बड़ी कूटनीतिक जीत माना जा रहा है। कई राज्यों में विपक्षी दलों की फूट का राजनीतिक लाभ लेते आ रही भाजपा के सामने कांग्रेस-एनसीपी की यह जीत बड़े मनोवैज्ञानिक मायने रखती है।
 

इसीलिए माना जा रहा था कि राहुल गांधी या सोनिया गांधी उद्धव ठाकरे के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होकर बीजेपी के खिलाफ विपक्षी एकता का महत्त्वपूर्ण संदेश दे सकते हैं। लेकिन तमाम अटकलबाजियों के बीच राहुल और सोनिया ने उद्धव ठाकरे के शपथ ग्रहण समारोह से दूरी बनाए रखी। यह बेवजह नहीं, बल्कि पार्टी का एक सोचा-समझा गया कदम था।

पार्टी खुद को शिवसेना के हिंदुत्व से दूर रखते हुए सरकार में शामिल होने का साफ संकेत अपने वोटरों को देना चाहती थी। यही कारण है कि एक तरफ तो सरकार में शामिल होकर कांग्रेस ने बीजेपी के खिलाफ विपक्षी एकता का मजबूत संदेश दिया, वहीं शपथ ग्रहण समारोह से दूरी रखकर पार्टी नेतृत्व ने अपने पारंपरिक वोटरों को यह आश्वासन भी दे दिया कि वह कट्टर हिंदुत्व से दूरी बनाए रखेगी।

यहां हो सकता था नुकसान


पार्टी के एक नेता के मुताबिक अखिल भारतीय स्तर पर बीजेपी के विकल्प के रूप में जनता के सामने कांग्रेस का ही नाम सामने आता है। इसलिए कांग्रेस केवल महाराष्ट्र के गणित को ध्यान में रखकर नहीं चल सकती थी। उसे पूरे देश के मतदाताओं को संदेश देना था। नेता के मुताबिक मुस्लिम समाज के एक बड़े संगठन जामिअत-उलेमा-ए-हिंद ने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर अपील की थी कि वे महाराष्ट्र की सरकार में शिवसेना के साथ शामिल न हों क्योंकि इससे पूरे देश में गलत संदेश जाएगा। इस पत्र ने भी कांग्रेस नेतृत्व की उलझन बढ़ा दी थी। 

दिल्ली का चुनाव अहम


दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के एक नेता के मुताबिक राजधानी के विधानसभा चुनाव सर पर हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी ने जबरदस्त तरीके से अपने वोटरों के बीच वापसी की है। इस बढ़त में उन मुस्लिम वोटरों की संख्या काफी अधिक है जो राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी का विकल्प पाना चाहते हैं। ऐसे में ठीक चुनाव के वक्त अगर पार्टी नेतृत्व उद्धव ठाकरे के साथ खड़ा दिखता तो उससे मुस्लिम मतदाताओं में नकारात्मक संदेश जा सकता था। विशेषकर आप इस मौके को भुनाने की कोशिश जरूर करती। इसलिए कांग्रेस नेतृत्व ने शपथ ग्रहण समारोह से दूरी रखकर मतदाताओं के बीच एक अच्छा संकेत दिया।


 



पिछले लोकसभा चुनाव में इस तरह आगे बढ़ी कांग्रेस-  


उत्तर-पश्चिम लोकसभा क्षेत्र- बीजेपी नेता मनोज तिवारी और कांग्रेस की दिग्गज नेता शीला दीक्षित के बीच इस सीट पर सीधी टक्कर हुई। मनोज तिवारी ने 787,799 या 53.90 फीसदी वोट हासिल किया। शीला दीक्षित 28.85 फीसदी वोटों के साथ दूसरे तो आप उम्मीदवार दिलीप पांडेय तेरह फीसदी वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे। कांग्रेस ने इस सीट पर 12.55 फीसदी वोटों का सुधार किया था जबकि आप के वोटों में 21.24 फीसदी की कमी आई थी।  

नई दिल्ली लोकसभा क्षेत्र- दिल्ली की इस प्रतिष्ठित सीट पर भाजपा की मीनाक्षी लेखी ने जीत दर्ज की। उन्होंने 5,04,206 या 54.77 फीसदी मत प्राप्त किए। उनके निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस उम्मीदवार अजय माकन को 2,47,702 या 26.91 फीसदी मत मिले। इस सीट पर कांग्रेस के वोटों में आठ फीसदी से ज्यादा का सुधार हुआ जबकि आप के वोटों में 13.64 फीसदी की कमी आई। इसके पूर्व के चुनाव में आप के आशीष खेतान दूसरे नंबर पर रहे थे। यानी आप को यहां दूसरा स्थान भी खोना पड़ा।

पूर्वी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र- वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में स्टार क्रिकेटर रहे गौतम गंभीर ने बीजेपी की इस सीट पर जीत दर्ज की। उन्हें 6,96,158 या 55.35 वोट हासिल हुए। जबकि दूसरे नंबर पर कांग्रेस के अरविंदर सिंह लवली ने 24.24 फीसदी वोट हासिल किए। आप की उम्मीदवार आतिशी मार्लीना को महज 17.44 फीसदी वोट मिले। कांग्रेस के वोट फीसदी में 7.25 की बढ़त तो आप के वोटों में 14.47 की कमी आई।

पश्चिमी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र- बीजेपी उम्मीदवार प्रवेश साहब सिंह वर्मा ने इस सीट पर अपनी जीत बरकरार रखते हुए 8,65,648 या 60.05 फीसदी वोट हासिल किए। दूसरे स्थान पर रहे महाबल मिश्रा ने लगभग 20 फीसदी वोट हासिल किए। यहां भी कांग्रेस ने 2014 की तुलना में अपने प्रदर्शन में 5.59 फीसदी मतों का सुधार किया। 2014 में महाबल मिश्रा 14.33 फीसदी वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे थे। इस सीट पर भी कांग्रेस के वोटों में लगभग 6 फीसदी की बढ़ोतरी तो आप के वोटों में लगभग 12 फीसदी की कमी आई।

चांदनी चौक लोकसभा क्षेत्र- वर्तमान केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन को इस सीट पर 5,19,055 या 52.94 फीसदी वोट मिले। कांग्रेस उम्मीदवार जेपी अग्रवाल यहां 29.67 फीसदी वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे। कांग्रेस के वोटों में इस सीट पर भी 11.75 फीसदी का सुधार हुआ, वहीं आप के वोटों में लगभग 16 फीसदी की कमी आई। जबकि 2014 के चुनाव में आप के आशुतोष गुप्ता ने लगभग 31 फीसदी वोट हासिल किए थे।    
 
दक्षिणी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र- भाजपा उम्मीदवार रमेश विधूड़ी ने अपनी यह सीट बरकरार रखी। उन्हें कुल 6,87,014 या 56.58 फीसदी वोट मिले। आप के राघव चड्ढा 3,19,971 या 26.35 फीसदी वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे। इस सीट पर भी आप के वोटों में 9.12 फीसदी वोटों की कमी आई। कांग्रेस के नए प्रत्याशी बॉक्सर विजेंदर सिंह यहां 1,64,613 या 13.56 फीसदी वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे, लेकिन यहां भी कांग्रेस ने 2014 के मुकाबले 2.20 फीसदी वोटों का सुधार किया।

उत्तर-पश्चिम लोकसभा क्षेत्र- दिल्ली की इस सुरक्षित सीट पर बीजेपी के नए प्रत्याशी हंसराज हंस ने जीत दर्ज की। उन्हें 8,48,663 या 60.49 फीसदी मत मिले। आम आदमी पार्टी यहां दूसरे नंबर पर रही। पूर्व में बीजेपी के नेता रहे गूगन सिंह रंगा ने यहां 21 फीसदी वोट प्राप्त किए। दूसरे स्थान पर रहने के बाद भी 2014 लोकसभा चुनाव की तुलना में आप के वोटों में 17.55 फीसदी की कमी आई। 2014 में बीजेपी उम्मीदवार उदित राज को 46.44 फीसदी तो आप की राखी बिड़लान को 38.56 फीसदी मत मिले थे। हालांकि, कांग्रेस ने इस सीट पर भी सुधार किया। कांग्रेस उम्मीदवार राजेश लिलोठिया ने 2019 में 16.88 फीसदी वोट हासिल किए जो 2014 की प्रत्याशी कृष्णा तीरथ को मिले वोटों की तुलना में 5.27 फीसदी ज्यादा था।