सबसे ज्यादा रोचक होगा दिल्ली का चुनाव


हमारा देश लगभग हर समय चुनावी मौसम का सामना करता रहता है। महाराष्ट्र-हरियाणा के विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, जबकि झारखंड में निर्वाचन प्रक्रिया शुरू हो गई है। आगे बारी दिल्ली की है और बिहार-बंगाल जैसे बड़े और राजनीतिक नजरिए से महत्वपूर्ण राज्यों का नंबर भी बहुत दूर नहीं है, लेकिन जिस राज्य की चुनावी राजनीति सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है, वह दिल्ली है। इसका कारण यह है कि अरविंद केजरीवाल से दिल्ली के मतदाता अभी निराश नहीं हुए हैं। केजरीवाल अपने नागरिकों के साथ हरदम खड़े नजर आते हैं और शिक्षा व स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में उन्होंने दिल्ली में व्यापक बदलाव किए हैं। उनका मुकाबला नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जादुई जोड़ी से होने वाला है। इस जोड़ी ने भाजपा को ऐसी चुनाव मशीन में तब्दील कर दिया है, जो जब तक हार न जाए, नहीं माना जा सकता कि उसकी हार हो जाएगी। यहां अगर अन्य चुनावी राज्यों की तुलना में दिल्ली को ज्यादा महत्व दिया जा रहा है, तो इसके कुछ कारण और भी हैं। एक कारण तो यही है कि दिल्ली देश की राजधानी है, मिनी इंडिया, इसलिए उस पर पूरे देश की नजर रहती है। दिल्ली को तवज्जो देने का दूसरा कारण यह है कि आम आदमी पार्टी (आप) ने देश में वैकल्पिक राजनीति की शुरुआत करने का दावा किया था। इस दावे पर आप अब भी कायम है और अगर वह दिल्ली में मजबूत रहती है, तो पार्टी यह सपना आराम से देख सकती है कि देर-सवेर उसका देशभर में विस्तार हो जाएगा। बहरहाल, दिल्ली में केजरीवाल स्वयं भी एक फैक्टर हैं, जिन्होंने पहली बार दिल्ली में अल्पमत सरकार बनाई थी। उसके गिरने के बाद दूसरे चुनाव में उन्हें भारी से ज्यादा बहुमत मिला। 60 सदस्यीय विधानसभा में विपक्ष को मात्र तीन सीटें मिली थीं। इसके बाद केजरीवाल ने खूब विवाद खड़े किए। यह भी सही है कि भारी बहुमत होने के बावजूद केजरीवाल सरकार का पांच साल का कार्यकाल आसान नहीं रहा। आप में तीखे मतभेद देखे गए। पार्टी का विभाजन भी हुआ।  
केजरीवाल पर रास्ते से भटकने का आरोप लगा। भ्रष्टाचार के आरोपों में भी पार्टी की फजीहत हुई। यहां तक कि उप-राज्यपाल से टकराव की आड़ में केजरीवाल केंद्र की ताकतवर मोदी सरकार से भी भिड़ते देखे गए। इसके बावजूद सच यह भी है कि दिल्ली के ज्यादातर लोगों को केजरीवाल का एक्टिविस्ट का रूप अच्छा लगता है। राजधानी के मध्यम-निम्न मध्यम और गरीब वर्ग में वे काफी लोकप्रिय बताए जाते हैं। क्या दिल्ली के सरकारी स्कूलों के कायाकल्प की चर्चा देशभर में नहीं होती है? राजधानी में चल रहे मोहल्ला क्लीनिक सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा की व्यापक व्याधि के बीच बड़ी राहत माने जाते हैं। दिल्ली में बिजली सबसे ज्यादा सस्ती है। बसें और मेट्रो में महिलाएं नि:शुल्क यात्रा करती हैं। भ्रष्टाचार मिटाने और पारदर्शिता लाने का केजरीवाल का वादा हवा-हवाई साबित हुआ, लेकिन कई निर्माण कार्य तय समय और आकलन से कम मूल्य पर पूरे किए जाने के लिए उनकी प्रशंसा भी की जाती है। तथ्य यह भी प्रमाणित करते हैं कि भाजपा भी केजरीवाल की लोकप्रियता को स्वीकार करती है। वरना और क्या वजह है कि दिल्ली की अवैध बस्तियों को नियमित करने का ऐलान मोदी सरकार ने कर दिया है? याद रखिए, भाजपा एक समय इन बस्तियों को नियमित करने के खिलाफ थी। अब वह यह महसूस कर रही होगी कि दिल्ली सरकार के कुछ अच्छे काम भाजपा के भावनात्मक मुद्दों पर भारी पड़ सकते हैं। अत: उसे अच्छे कामों का वादा करना पड़ रहा है और इसका सारांश यह है कि दिल्ली का चुनाव बहुत दिलचस्प होगा। हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनाव में भाजपा ने दिल्ली की सभी सातों सीटें जीती थीं, लेकिन उसके बाद हुए महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव ने साफ कर दिया कि जनता को मुद्दों की समझ है। वह जानती है कि केंद्रीय मुद्दों पर राज्य सरकारों को नहीं चुना जाता। तभी तो 370 और पाकिस्तान के कब्जे में थलसेना द्वारा की गई आतंकी ठिकानों पर कार्रवाई की छाया में लड़े गए विधानसभा चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन कमजोर पड़ गया। दिल्ली की राजनीति का एक कोण और है। हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव से उत्साहित कांग्रेस झारखंड में गठबंधन के रास्ते पर चल पड़ी है। यदि वहां के नतीजे उसके अनुकूल रहे, तो वह दिल्ली में पूरी ताकत लगाएगी। इसलिए दिल्ली का रण बिल्कुल अलग होगा। अभी यह नहीं कहा जा सकता कि मुकाबला त्रिकोणीय होगा या नहीं। कांग्रेस आप से गठबंधन करने के रास्ते पर भी चल सकती है और नहीं भी चल सकती है, लेकिन कांग्रेस जो रुख अपनाएगी, उससे दिल्ली के चुनाव का रोमांच बढ़ेगा ही।  
11दिसम्बर/ईएमएस