रेप करने वाले मानसिक रोगी या अपराधी?


भारत में पिछले एक दशक में बलात्कार की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है। बलात्कार की घटनाओं को रोकने के लिए और अपराधियों को दंडित करने के लिए सरकार ने पिछले एक दशक में कई सख्त कानून बनाए हैं। इसके अलावा लड़कियों और लड़कों को सेक्स संबंधी शिक्षा भी दी जा रही है। यौन अपराधों को रोकने के लिए पुलिस को भी विशेष अधिकार दिए गए हैं। न्यायालयों में बलात्कार के दोषियों पर जल्द से जल्द सुनवाई हो और सजा मिले, उसका भी प्रावधान किया गया है। कम उम्र की बच्चियों के साथ बलात्कार करने के मामले में फांसी की सजा का भी प्रावधान किया गया है। लेकिन इसके बाद भी बलात्कार की घटनाएं कम होने के स्थान पर बढ़ती ही जा रही हैं। सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि बहुत कम उम्र की बच्चियों के साथ बलात्कार की घटनाएं बढ़ी हैं। बलात्कार के बाद बच्चियों को मारने की घटनाएं भी पहले की तुलना में बहुत ज्यादा देखने को मिली हैं। इसका एक ही अर्थ है कि बलात्कार के बाद अपराधी फांसी से बचने के लिए महिलाओं और बच्चियों की हत्या करके सबूत मिटाने की चेष्टा करते हैं। जहां बलात्कार जैसे अपराध होते हैं, वहां कोई प्रत्यक्षदर्शी तो होता नहीं है। ऐसी स्थिति में दोषी को पकड़ पाना भी पुलिस के लिए मुश्किल होता है। सीसीटीवी कैमरे की सहायता से यदि संदिग्ध व्यक्ति को पकड़ भी लिया जाता है। तो उसको सजा दिला पाना, प्रत्यक्षदर्शी नहीं होने की दशा में बहुत मुश्किल होता है। भीड़ तंत्र के दबाव में पुलिस निरपराध को भी फंसाकर मामले को शांत करती है।
इस तरह की घटनाओं के बाद समाज में व्याप्त भारी रोष और भीड़तंत्र की मांग पर, सरकार बिना सोचे समझे कानून बना देती हैं। सख्त कानून बन जाने के बाद भी घटनाएं कम होने के स्थान पर बढ़ती ही जा रही हैं। समाज, सरकार, पुलिस कोई भी इनके वास्तविक कारणों को जानने की कोशिश नहीं कर रहा है। यह चिंता का विषय है।
कारणों को खोजने की जरूरत
पिछले एक दशक में बलात्कार की घटनाएं बड़ी तेजी के साथ भारत में बढ़ी हैं। छोटी-छोटी बच्चियों के साथ बलात्कार होना सबसे बड़ी चिंता का कारण है। सेक्स करना एक मानसिक अवस्था है। जो अपराधी रेप जैसी घटनाओं को अंजाम देते हैं। निश्चित रूप से वह मानसिक रोग के शिकार होते हैं। अन्यथा वह कभी भी छोटी-छोटी बच्चियों के साथ बलात्कार कर ही नहीं पाते। सामाजिक व्यवस्था और सोच में पिछले एक दशक में बड़ी तेजी के साथ परिवर्तन आया है। सेक्स संबंधों को लेकर भारतीय समाज में अनैतिकता बढ़ी है। लंबी उम्र तक शादी नहीं होने के कारण अनैतिक संबंध बड़ी तेजी के साथ बढ़े हैं। बलात्कार जैसी घटनाएं भी बड़ी तेजी के साथ बढ़ रही हैं। पिछले एक दशक में बच्चों से लेकर बड़ों के बीच स्मार्टफोन और इंटरनेट का प्रभाव देखने को मिल रहा है। कम उम्र के बच्चे सेक्स संबंधों को लेकर समय के पहले ही परिपक्व हो रहे हैं। दो दशक पहले जब इंटरनेट और मोबाइल फोन नहीं था। तब सेक्स संबंधों को लेकर भारतीय समाज की एक अलग सोच थी। युवाओं में भी 18 से 20 साल की उम्र तक-सेक्स संबंध बनाने की मानसिकता तथा उत्कण्ठा नहीं होती थी। वर्ष 2000 तक 18 से 25 वर्ष की उम्र में युवा युवतियों की शादी हो जाया करती थी। महिलाओं एवं लड़कियों का पहनावा एवं घूमने फिरने में शालीनता थी। परिवार के सदस्य संयुक्त एवं समूह के साथ रहने के कारण, बलात्कार जैसी घटनाएं होने का अवसर आसानी से नहीं मिलता था।
पिछले 20 वर्षों में युवा युवतियों की सोच, रहन-सहन, शिक्षा के लिए शहरों में जाकर अकेले रहना, मोबाइल और इंटरनेट के साथ लगातार बने रहते हैं। जिसके कारण पिछले दो दशक में भारतीय समाज की सोच और युवा-युवतियों की सोच में भारी परिवर्तन आया है। कैरियर बनाने के चक्कर में युवा और युवती 30 से 35 साल की उम्र तक शादी नहीं करते हैं। पढ़ाई, कोचिंग, पीएचडी एवं अन्य कोर्स करने के नाम पर वह घर से बाहर रहकर, उन्मुक्त व्यवहार, शार्ट एवं फैशन का पहनावा, देर रात तक घूमना फिरना शुरू हो जाता है। इस बीच अनैतिक संबंध भी बन जाते हैं। कुछ लोग जो इस तरह के संबंध नहीं बना पाते हैं। वह धीरे-धीरे मानसिक रोगी होने लगते हैं।
पाश्चात्य देशों की नकल सबसे ज्यादा नुकसानदेह
वर्तमान स्थिति में युवा युवतियों द्वारा पाश्चात्य देशों की नकल करने के कारण, भारतीय सामाजिक व्यवस्था और सोच में भारी परिवर्तन आया है। भारतीय समाज अपनी सामाजिक परंपराओं का पालन भी करना चाहता है। वहीं पुरानी अपनी सोच को बदलने के लिए तैयार नहीं है। युवाओं के बीच दोहरी मानसिकता के चलते बहुत सारी विसंगतियां देखने को मिल रही हैं। युवा वर्ग खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारते हुए नजर आ रहे हैं। पश्चिमी देशों में 14 से 18 साल के युवा युवती सेक्स संबंध बना लेते हैं। वहां के परिवार और समाज में इसकी मान्यता है। कानून भी इसकी इजाजत देता है। पश्चिमी देशों में शादी की उम्र 30 से 35 वर्ष के बाद आमतौर पर शुरू होती हैं। जब परिपक्वता दोनों में आ जाती है। उनके सेक्स संबंध उनकी शारीरिक और मानसिक आवश्यकता के अनुसार बहुत कम उम्र में ही बन जाते हैं। इसके विपरीत भारत में 30 से 35 वर्ष की उम्र तक युवा-युवती शादी नहीं कर रहे हैं। युवाओं में आपस में संबंध बनाना सामाजिक तौर पर स्वीकार नहीं किया जाता है। दुनिया भर के देशों में सेक्स वर्कर आसानी से उपलब्ध होते हैं। भारत में सेक्स वर्कर का धंधा गैरकानूनी है। जिसके कारण भारत में मोबाइल और इंटरनेट के बाद वैवाहिक बंधन में नहीं बधने के कारण यौन संबंधों सें अपराध बड़ी तेजी के साथ बढ़ रहे हैं। चिकित्सा विज्ञान की बात करें तो 14 वर्ष की उम्र से अधिक के युवा युवतियों में सेक्स संबंधी प्राकृतिक मांग उत्पन्न होती है। यदि यह प्राकृतिक मांग पूरी नहीं हो पाती है, तो यह धीरे-धीरे मानसिक रूप से बीमार होने लगते है। भारत के कई राज्यों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं का अनुपात काफी कम है। जिसके कारण शादी करने के लिए लड़कियां उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। वैकल्पिक अन्य कोई व्यवस्था ना होने से भी बलात्कार और छेड़छाड़ की घटनाएं, भारत में तेजी के साथ बढ़ रही हैं। चुकी यह मानसिक रोग है, अतः इसे कानून बनाकर भी नियंत्रित कर पाना संभव नहीं होगा।
प्रकृति के साथ खिलवाड़ ठीक नहीं
भारत में स्त्री पुरुषों के बीच सेक्स संबंधों को लेकर जो दूरियां और विसंगतियां बढ़ रही हैं। उसको दूर किए जाने की आवश्यकता है। भारत में लड़कियों के लिए शादी की उम्र 18 वर्ष तथा युवकों के लिए 21 वर्ष है। कई दशक पहले भारत में बाल विवाह बड़ी संख्या में होते थे। किंतु अब 25 से 30 वर्ष की उम्र हो जाने के बाद भी युवा युवती शादी के बंधन में नहीं बंध पा रहे हैं। जिसके कारण सामाजिक व्यवस्था तेजी के साथ बिगड़ रही है। पिछले एक दशक में युवा-युवती अपना कैरियर बनाने के लिए 30 और 35 वर्ष की उम्र तक शादी करने के लिए तैयार नहीं होते हैं। इस बीच वह अपने अनैतिक संबंध भी बनाने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। स्वेच्छा से बने योन संबंध एवं लिविंग रिलेशन में कई वर्ष रहने के बाद विवाद होने की स्थिति में बलात्कार के प्रकरण दर्ज कराना भी आज आम बात हो गई है। भारत में महिलाओं के लिए विशेष कानून लागू किए गए हैं। इसका लाभ उठाने के लिए महिलाओं द्वारा बलात्कार के प्रकरण दर्ज कराने से रिकॉर्ड बड़ी तेजी के साथ बढ़ रहा है। जिससे सामाजिक सद्भाव और महिला पुरुषों के संबंध में एक अलग तरीके का तनाव देखने को मिल रहा है।
वर्तमान स्थिति में भारतीय सामाजिक, आर्थिक एवं प्राकृतिक स्थिति को देखते हुए समाज और सरकार को इस समस्या के वास्तविक कारणों को खोजना होगा। केवल कानून और पुलिस के माध्यम से बलात्कार और यौन अपराधों को रोकना संभव नहीं है। सेक्स प्रकृति जन्य मानसिक एवं शारीरिक मांग है। जो समय पर पूरी ना हो तो यह धीरे-धीरे सामान्य व्यक्ति को भी मानसिक रोगी बना देता है। इसमें महिलाओं और पुरुषों के बीच में भेद करना संभव नहीं है। जरूरत इस बात की है, कि इस समस्या पर विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ, सामाजिक एवं धार्मिक नेतृत्व करने वाले विशिष्ट व्यक्ति, इस संबंध में खुलकर चर्चा करें। वास्तविक समस्या के कारणों को खोज कर उसके निदान के प्रयास करें दो। नावों की सवारी और भीड़तंत्र की सोच से इस समस्या का समाधान संभव नहीं है।