प्री-प्लान हिंसा से सुलगा शहर; 3 इलाकों से पलायन कर रहे लोग, महिलाएं मस्जिदों में शरण ले रहीं


कानपुर. कानपुर में शुक्रवार को हिंसा के बाद शनिवार शाम फिर आगजनी की घटना सामने आई। 1992 के दंगों के बाद कानपुर की आवोहवा में तनाव है। स्थानीय लोग इस हिंसा को प्रीप्लान बता रहे हैं। बाबूपुरवा, मुंशीपुरवा, बेगमपुरवा में सुरक्षाबल मुस्तैद हैं। अधिकांश घरों में ताले लटक रहे हैं। यहां से लोग नजदीकी रिश्तेदार, परिचतों के घर डेरा डालने पहुंच रहे हैं। महिलाएं नई मस्जिद में पहुंचकर खुद को सुरक्षित कर रही हैं।


शनिवार को दैनिक भास्कर टीम सबसे पहले हिंसा प्रभावित बेगमपुरवा पहुंची। यहां शुक्रवार को नमाज के बाद पुलिस पर पथराव हुआ था। साथ में पेट्रोल बम और एसिड बम चलाए गए थे। चार रॉड पुलिस चौकी से ईदगाह तक 300 मीटर की दूरी पर कई जगह टूटी शीशियों के कांच पड़े मिले। 4 बाइक जली हालत में पड़ी हैं। यह वाहन पुलिस के बताए गए। शनिवार को इस इलाके में 100 से ज्यादा पुलिस कर्मियों की ड्यूटी लगी है। इनमें एसएसबी, सिविल पुलिस और पीएसी के जवान हैं। 


बेगमपुरवा में मेहनत मजदूरी करने वाले परिवार 
बेगमपुरवा में लोगों के बीच आज पुलिस का खौफ देखने को मिला। महिलाओं का कहना है कि रात में जब पुलिस आई तो उनके साथ कोई महिला पुलिस नहीं थी। वह लोग बच्चों को ले गए। बुजुर्गों को ले गए हैं। अब हम लोग मस्जिद के मैदान में इकट्ठा हो रहे हैं। जिस बेगमपुरवा में हिंसा हुई, वहां ज्यादातर परिवार रोज कमाने-खाने वाले हैं। कोई ठेला चलाता है तो कई ई-रिक्शा। फल की दुकान लगाने और मजदूरी करने वाले हैं। 


पोस्टमॉर्टम हाउस: सैफ का भाई बोला- पुलिस ने गोली मारी
हिंसक प्रदर्शन के दौरान गोली का शिकार हुए सैफ (25) का शनिवार को पोस्टमॉर्टम किया गया। स्थानीय नेता परिवार को सांत्वना देने पोस्टमॉर्टम हाउस पहुंचे। यहां सैफ के बड़े भाई ने कहा- "हम कल से बता रहे हैं कि हमारे भाई को पुलिस ने गोली मारी है। अभी उसकी उम्र ही कितनी थी? अम्मी रो-रो कर पागल हुई जा रही हैं। सब हम लोगों को ही गलत समझ रहे हैं...।" यहां दोबारा हिंसा न भड़के, ऐहतियातन हैलेट हॉस्पिटल के इमरजेंसी से पोस्टमॉर्टम हाउस तक लगभग 200 पुलिसकर्मी बुलेटप्रूफ जैकेट में ड्यूटी पर हैं। 



बुजुर्ग बोले- लड़कों ने नारे लगाए तो पुलिस ने लाठी भांजी
बेगमपुरवा में एक बुजुर्ग बताते हैं कि शुक्रवार को ईदगाह में नमाज खत्म हुई तो लोगों ने नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने के लिए 300 मीटर दूर चार रॉड पुलिस चौकी तक जुलूस निकालने की बात कही। पुलिस ने मना कर दिया। इसके बाद कुछ लोगों ने नारे लगाए तो पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया। लड़कों ने पथराव शुरू कर दिया, जिसके बाद हालात बिगड़ गए।


पुलिस का तर्क- भीड़ हिंसा कर रही थी, इसलिए लाठीचार्ज किया
सीओ बाबूपुरवा मनोज गुप्ता का कहना है कि शहर में धारा 144 लगी है। इसलिए किसी को जुलूस निकालने की अनुमति नहीं है। लेकिन, भीड़ ने हिंसा शुरू कर दी तो शांति व्यवस्था के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा। उन्होंने बताया कि अब तक 39 लोगों को हिरासत में लिया गया है। 



भीड़ के बवाल के बाद एक्शन में आई पुलिस
बाबूपुरवा, बेगमपुरवा में 3 घंटे तक हिंसा चली। इसके बाद 5.30 बजे के बाद पुलिस ने इलाके में तांडव किया। प्रत्यक्षदर्शियों ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि रात 10 बजे तक पुलिस घरों में घुस-घुस कर लोगों को पकड़ ले गई। दुकानें तोड़ दी गईं। घरों के सामने खड़े वाहनों को तोड़ दिया गया। जिनके घरों में लकड़ी के दरवाजे हैं, उन्हें तोड़ा गया। यहां अनवर बताते हैं कि उसके घर के दरवाजा को बंदूक की बटों से तोड़ा गया। मेरे भांजे को उठा ले गए। इनायत अली अपने मैजिक वाहन का टूटा शीशा दिखाते हुए कहते हैं कि हम तो बवाल में शामिल भी नहीं थे। घर के सामने खड़ी गाड़ी तोड़ दी। अब कहाँ आदमी गाड़ी खड़ी करेगा।



ईदगाह मैदान में था बेटी का निकाह, कोई नही पहुंचा
शुक्रवार को ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में काम करने वाले जमालुद्दीन की बेटी का निकाह ईदगाह मैदान में होना था। सारी तैयारियां हो चुकी थी। पंडाल सज गए थे। खाना लग गया था, लेकिन बवाल के बाद शादी में कोई मेहमान नही पहुंचा। यहां जो रिश्तेदार इकट्ठा हुए थे वह भी जल्दी निकल गए। हालांकि, दोनों पक्षों से कुछ लोगों ने एक मस्जिद में इकट्ठा होकर निकाह पढ़वा दिया। 



एक्सपर्ट राय: पुलिस में आपसी समन्वय की कमी और सूचना तंत्र के फेल होने से हिंसा
उत्तर प्रदेश में नागरिकता कानून के विरोध में हिंसा की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार समीरात्मज मिश्रा कहते हैं कि लखनऊ से लेकर हर उस जिले में पुलिस फेल रही, जहां हिंसा हुई। मिश्र कहते हैं कि लोकल इंटिलिजेन्स पूरी तरह फैल रहा। जब कानपुर शहर के पत्रकारों को मालूम था कि जुमे की नमाज के बाद प्रदर्शन होगा तो पुलिस को यह कैसे नहीं पता चला? जहां उपद्रव हुए, वहां पुलिस बल की कमी रही। जब हिंसा हो गई तब अतिरिक्त सुरक्षाबल पहुंचा। यही वजह रही कि उपद्रवी तांडव करते रहे। पुलिस में समन्वय की कमी रही। बाबूपुरवा में डीएम और एसपी 5 बजे अतिरिक्त पुलिस बल के साथ पहुंचे। जबकि यहां सबसे ज्यादा बवाल हुआ। सबसे अंत में पुलिस को यह पता ही नहीं चला कि जुमे की नमाज के बाद जुलूस भी निकलेगा। कई जगह जुलूस निकलने दिया गया तब वहां भी बवाल हुआ और जहां नहीं निकालने दिया, वहां भी बवाल हुआ।



पहले से हिंसा की तैयारी थी?
स्थानीय पत्रकारों का मानना है कि शुक्रवार को जिस तरह का उपद्रव हुआ, वह 1992 के दंगों में दिखाई दिया था। हिंसा के दौरान उपद्रवियों ने पत्थर, पेट्रोल बम और एसिड बम का प्रयोग किया। यह सब प्री-प्लान का एक पार्ट दिख रहा है। स्थानीय लोगों का मानना है कि कुछ बाहरी तत्व भी कानपुर में घुसे हुए हैं। इसका अंदाजा तब हुआ जब उपद्रवी चेहरे ढंककर पथराव करते दिखे। लोगों को भड़काया गया। पुलिस की सख्ती के बाद भी जुलूस निकालने के लिए एकजुट हुए। जिन्होंने पीस कमेटी में भीड़ को उग्र न होने का आश्वासन दिया था, वह भी उन्हें रोकने में विफल रहे।



यह है मामला
शुक्रवार को जुमे की नमाज के बाद कानपुर के कई इलाकों में नागरिकता कानून के विरोध में प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतरे और हिंसक घटनाएं सामने आईं। सबसे अधिक उग्र प्रदर्शन बाबूपुरवा में हुए। यहां फायरिंग में सैफ और मुंशीपुरवा के रहने वाले आफताब आलम की प्रदर्शन के दौरान गोली लगने से दो की मौत हो गई थी। जबकि, 13 लोग घायल हुए थे, जिनका इलाज चल रहा है।