घुसपैठिए कौन हैं

देश में एनआरसी, एनपीआर पर भले ही घमासान मचा हो, हिंसा की चपेट में कई राज्य हों, मगर क्या यह सोचने का प्रश्न नहीं है कि देश में अवैध तरीके से घुसे लोगों को बाहर निकाला जाए। ये कौन लोग हैं, जो बिना पूछे हमारे घर में आ गए और अब न निकलने की जिद पकड़े हैं। आज जब पूरी दुनिया घुसपैठियों से निजात पाना चाहती है तो भारत क्यों नहीं इस दिशा में आगे बढ़े। नेशनल सिटिजन रजिस्टर की अंतिम लिस्ट जारी होने के साथ ही स्थिति पूरी तरह से पानी की तरह साफ हो गई है कि पूर्वोत्तर में कितने बहारी लोग घुसे हैं। संयुक्त राष्ट्र की उस रिपोर्ट पर अगर कायदे से गौर करें, जिसमें बांग्लादेश से एक करोड़ लोग गायब बताए गए हैं। उस लिहाज से स्थिति साफ हो जाती है कि वह सभी अवैध घुसपैठी बंग्लादेशी सीमाओं से सटे भारत के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में ही घुसे हैं। इन्होंने सबसे पहले अपना ठौर असम, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में बनाया। जहां इन्हें कुछ वर्षों में सियासी संरक्षण प्राप्त हो गया, उसके बाद इनके हौसले बुलंद हो गए, फिर धीरे-धीरे इन घुसपैठियों ने अपने बाकी लोगों को भी बुला लिया। नतीजा यह हुआ 1971 से लेकर 2019 तक इनकी संख्या न सिर्फ असम और पश्चिम बंगाल तक सीमित रही, बल्कि हिंदुस्तान के दूसरों राज्यों में भी इनकी जड़ें फैल गईं। इस वक्त समूचे भारत में दूसरे देशों के अवैध नागरिकों जिनमें मुख्यत: बांग्लादेशी व नेपालियों की संख्या लाखों-करोड़ों तक में पहुंच गई। सांसद मनोज तिवारी की चिंता एकदम वाजिब है कि पूर्वोत्तर राज्यों के अलावा दिल्ली और दूसरे राज्यों में भी एनआरसी लागू की जाए। वहां भी अवैध घुसपैठियों की तादाद अच्छी-खासी हो गई है। गौरतलब है कि पूर्वोत्तर राज्यों में बांग्लादेशियों की बढ़ी आबादी में पूर्ववर्ती हुकूमतों की बड़ी भूमिका रही। हालांकि उनको इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि 21वीं सदी के आते-आते ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। 70 से लेकर 90 के दशक तक बंगलादेश की सीमाओं पर हमारी पर्याप्त चौकसी नहीं रही। बस इसी बात का बंगालियों ने फायदा उठाया। सीमा पर चौकसी कम होने के चलते घुसपैठियों ने हिंदुस्तान की सीमा से सटे राज्य जैसे असम, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल और बिहार में अपना डेरा जमा लिया। एकाध वर्ष बाद ही इन्होंने अपनी नागरिकता का दावा ठोकना शुरू कर दिया। कुछ सफल भी हो गए। जो नहीं हो पाए, वह आज अंतिम सूची का हिस्सा हैं। सरकार का अधिकृत आंकड़ा बताता है कि पूर्वोत्तर राज्यों के अलावा भी पूरे देश में घुसपैठियों की संख्या तीन करोड़ के आसपास है। कभी कभार ऐसा भी प्रतीत होता है कि यही बढ़ी हुई आबादी ने जनसंख्या संतुलन को पूरी तरह से बिगाड़ दिया है। कुछ साल पहले असम के पूर्व राज्यपाल ने भी केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया था कि हर दिन सैकड़ों की संख्या में बांग्लादेशी भारत में घुसपैठ करते हैं। जो लोग अब एनआरसी की खामियों के सहारे अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं वे वही हैं जो यह समझने को तैयार नहीं कि जहां करोड़ों लोगों की छानबीन होनी हो वहां गलती रह जाना स्वाभाविक है। उन्हें यह पता होना चाहिए कि गलतियां दूर करने की हर संभव कोशिश हो रही है। एनआरसी को लेकर राजनीति का मैदान असम के बाहर भी तैयार हो रहा है। अब कई राज्यों में असम की तर्ज पर एनआरसी की मांग हो रही है। पता नहीं इन मांगों का क्या होगा, लेकिन यह समझना जरूरी है कि भारत कोई धर्मशाला नहीं कि जो चाहे यहां आकर बस जाए। दुर्भाग्य से असम और आसपास के अन्य राज्यों के साथ पश्चिम बंगाल में ऐसा ही हुआ। विडंबना यह है कि कई राजनीतिक दल इस खतरे की अनदेखी करने की वकालत कर रहे हैं। यह कतई ठीक नहीं है।