दुष्कर्म पीड़िताओं को मिले त्वरित इंसाफ

हैदराबाद में महिला पशु चिकित्सक के साथ बलात्कार कर उसे जिंदा जलाने के मामले में गिरफ्तार चारों आरोपियों की पुलिस एनकाउंटर में मौत हो गई है। बलात्कार के आरोपियों कि पुलिस एनकाउंटर में मौत को लेकर विभिन्न तरह के सवाल उठ सकते हैं। लेकिन चारों बलात्कारियों की पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने की खबर के बाद देशभर में जो प्रतिक्रिया हुई है वह हमारी कानून व्यवस्था व न्यायपालिका के समक्ष एक गंभीर सवाल खड़ा करती है। देशभर में लोगों ने पुलिस एनकाउंटर की तरफदारी करते हुए उसे जायज ठहराने की बात कही है। लोगों का कहना है कि पुलिस ने चारों बलात्कारियों का एनकाउंटर कर अपराधियों में डर का माहौल पैदा किया है। पुलिस की इस कार्यवाही की सराहना की जानी चाहिए। सोशल मीडिया पर देश भर से लोग पुलिस के पक्ष में खुलकर समर्थन जता रहें हैं।
पुलिस एनकाउंटर सही था या गलत यह तो न्यायिक जांच का विषय हैं। लेकिन पुलिस हिरासत में जिस तरह से चारों बलात्कार के आरोपी मारे गए हैं। उस पर देश की जनता ने जो प्रतिक्रिया दी है उसे देखकर तो यही लगता है कि हमारे देश की कानून व्यवस्था बहुत धीमी गति से चल रही है। आधुनिक तकनीकी वाले इस दौर में देश के लोग चाहते हैं कि अपराधियों को सजा देने में लंबा समय नहीं लगाया जाना चाहिए। लोगों का मानना है बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के दोषियों को अविलम्ब  कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए।
देश के कई राज्यों ने नाबालिग बालिकाओं के साथ बलात्कार करने के दोषी व्यक्ति को फांसी देने का कानून भी बनाया है मगर आज तक एक भी बलात्कारी को फांसी की सजा नहीं हो पाई है। आज से 7 वर्ष पूर्व दिल्ली में निर्भया बलात्कार कांड के आरोपियों को फांसी की सजा सुनाने के बावजूद उन्हे अभी तक फांसी के फंदे पर नहीं लटकाया ला सका है। राजस्थान के अलवर में 7 महीने की बच्ची के साथ दुष्कर्म के मामले में दोषी को फांसी की सजा सुनाई गई है। बाड़मेर के जिला न्यायालय मे एक 12 साल की मासूस से सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के दो आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई गई है। मगर अभी तक एक भी दोषी को फांसी पर नहीं लटकाया जा सका है। जिससे अपराधियों में डर व्याप्त नहीं हो पाया है। इससे देश के लोगों में कानून व्यवस्था के प्रति निराशा का भाव पैदा होता है। उसी की प्रतिक्रिया में लोग हैदराबाद पुलिस के एनकाउंटर को सही ठहराने का प्रयास कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के उन्नाव में एक रेप पीड़ित लड़की को अभियुक्तों ने जिंदा जलाकर मारने की कोशिश की है। लड़की की गंभीर स्थिति को देखते हुए उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उसकी मौत हो गयी है। पीड़ित लड़की का शरीर आग में 90 फीसदी तक झुलस चुका था। लडक़ी का कसूर यह था कि उसने बीते मार्च महीने में अपने साथ हुए गैंगरेप की पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा दी थी। लड़की उसी मुकदमे के सिलसिले में रायबरेली जा रही थी। स्टेशन जाते समय पांच लोगों ने रास्ते में उसे पकड़ लिया और पेट्रोल डालकर जिंदा जलाने की कोशिश की। अभियुक्त कुछ दिन पूर्व ही जेल से जमानत पर बाहर आए थे। यदि मुजरिमो को तुरंत सजा मिल जाती तो वो जेल से बाहर आकर इस तरह का जघन्य अपराध नहीं कर पाते। मगर सामूहिक बलात्कार के आरोपी को भी कोर्ट से जमानत मिलना यह सवाल खड़ा करता है ऐसे अपराधियों को जमानत कैसे मिल जाती है।
राजस्थान के टोंक जिले के अलीगढ़ थाना क्षेत्र के एक गांव में पहली कक्षा में पढऩे वाली 6 साल की मासूम से एक व्यक्ति ने बलात्कार कर उसका गला घोट कर हत्या कर दी। बलात्कारी ने भेद खुलने के डर से उस मासूम का इतने दर्दनाक तरीके से गला दबाया कि उसकी आंखें भी उबल कर बाहर निकल आई। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कह रहे हैं कि अभियुक्त को गिरफ्तार कर लिया गया है। लेकिन अन्य किसी मासूम के साथ ऐसी घटना की पुनरावृति ना हो इस बाबत कुछ भी कहने से उन्होने कन्नी काट ली।
देश में आये दिन हो रही बलात्कर की घटनायें कब रुकेगी इसका सरकार के पास कोई जवाब नहीं है। जवाब के नाम पर राज्य सरकारें आंकड़ा गिनाने लगती हैं कि अब हमारे राज्य में ऐसी घटनाये कम हो रही हैं। भारत में कहा जाता हैं कि यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: यानि जहां पर स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवता रमते हैं। मगर इसके उलट हमारे समाज में हर रोज, हर घंटे महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ते जा रहे हैं। विडम्बना यह है कि अन्य स्थानों के साथ-साथ स्कूलों तक में ऐसे अपराध हो रहे हैं। आज कल देश में दुष्कर्म की ऐसी ऐसी घटनाए सामने आ रही है की आम आदमी का इंसानियत पर से विश्वास ही खत्म हो  रहा है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़ों के मुताबिक महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले दोगुने से भी ज्यादा हो गए हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के 2017 के आंकड़े साफ दर्शाते हैं कि दुष्कर्म और यौन शोषण के मामलों में बेहद बढ़ोतरी हुई है। महिलाओं के खिलाफ अपराधों में लगातार तीसरे साल भी वृद्धि देखने को मिली है। हाल ही में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने देश में हुए अपराध के वर्ष 2017 के नवीनतम आंकड़े जारी किए हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक देश भर में वर्ष 2017 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के तीन लाख 59 हजार 849 मामले दर्ज किए गए। 2016 में तीन लाख 38 हजार 954 मामले दर्ज किए गए थे। वहीं 2015 में तीन लाख 29 हजार 243 मामले दर्ज किए गए थे। इन अपराधों में हत्या, बलात्कार, दहेज हत्या, आत्महत्या के लिए उकसाना, एसिड हमले, महिलाओं के खिलाफ क्रूरता और अपहरण आदि शामिल हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक अधिकतम मामले उत्तर प्रदेश 56,011 में दर्ज किए गए। उसके बाद महाराष्ट्र में 31,979 मामले, पश्चिम बंगाल में 30,992, मध्य प्रदेश में 29,778, राजस्थान में 25,993 और असम में 23,082 मामले दर्ज किए गए हैं। आंकड़ों के मुताबिक 2017 में भारत में 32,559 बलात्कार के मामलों की रिपोर्ट दर्ज हुयी थी जिनमें मध्य प्रदेश में 5 हजार 562 बलात्कार के मामले दर्ज किये गये।
बारह साल से कम उम्र की बच्चियों से दुष्कर्म के दोषियों को मौत की सजा का बिल आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक 2018 संसद से पारित हो गया है। इस संबंध में 21 अप्रैल को एक अध्यादेश लागू किया गया था। देश के कई इलाकों में बच्चियों के साथ बलात्कार और फिर उनकी हत्या की घटनाओं के बाद यह अध्यादेश लागू किया गया था। इस विधेयक के तहत 16 साल से कम उम्र की लड़कियों से दुष्कर्म करनेवाले को सख्त सजा का प्रावधान किया गया है।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी महिला सुरक्षा पर गंभीर चिंता जताई है। राजस्थान में एक कार्यक्रम में बोलते हुये उन्होंने कहा पॉक्सो एक्ट के तहत दुष्कर्म के दोषियों को दया याचिका दायर करने का अधिकार नहीं होना चाहिए। संसद को दया याचिकाओं के इस विषय पर संविधान संशोधन के बारे में विचार करना चाहिए। संविधान ने दया याचिका का अधिकार दिया है। लेकिन पॉक्सो एक्ट के दोषियों को ऐसे किसी भी अधिकार की जरूरत नहीं है।
भारत में कई कानून बनने के बाद भी दुष्कर्म की घटनाये लगातार जारी हैं। रोजाना अलग-अलग राज्यों से बलात्कार होने की खबरें आती रहती हैं। एक सभ्य समाज के लिए यह चिंता का विषय होना चाहिए। समाज में व्याप्त इस प्रकार की सबसे बड़ी बुराई से छुटकारा कैसे मिले इसका जवाब किसी के पास नहीं हैं। हर कोई सरकार व पुलिस के भरोसे बैठा हुआ है। देश में सिर्फ कानून बना देने से ऐसी घटनाओ पर रोक लगा पाना सम्भव नहीं है। इसको रोकने के लिये समाज को भी आगे आना पड़ेगा।
ईएमएस/15 दिसंबर2019