आशंकाओं से इतर मप्र सरकार का सफल पहला वर्ष
कमलनाथ – मजबूत सरकार दबंग मुखिया
दरअसल हमारे देश में और अमूमन हर कहीं सत्ता उसके मुखिया के नाम से ज्यादा जानी जाती है। यह सच भी है जब जहाँ जो सत्तासीन होता है, उसी के नाम की सरकार कहलाती है। लेकिन हमारे यहाँ ऐसा कभी नहीं देखा गया कि किसी राज्य के भावी गद्दीनशीन का नाम साढ़े तीन बरस पहले ही लिख दिया जाए! आश्चर्य तो जरूर होता है मगर मप्र में ऐसा हुआ है जो अब सामने है। निश्चित रूप से काँग्रेस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को कमलनाथ की परख थी तभी तो उन्हें 11 जून 2016 को राज्यसभा चुनाव के दौरान मप्र से काँग्रेस प्रत्याशी, सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने वकील और पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विवेक तन्खा को जिताने की जिम्मेदारी सौंपी। यह वह दौर था जब यहां भाजपा अपने उफान पर थी। पूरे प्रदेश में शिवराज सिंह का बोलबाला था तब कमलनाथ की रुचि अपने संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा के अलावा केन्द्र की राजनीति में ज्यादा थी। उन्होंने आलाकमान का इशारा समझा और अपने हुनर का करिश्मा दिखाया। नतीजा सामने था काँग्रेस प्रत्याशी विवेक तन्खा को सबसे ज्यादा 62 वोट मिले जबकि भाजपा के अनिल माधव दवे और एमजे अकबर को 58-58 वोट मिले। वहीं भाजपा समर्थित निर्दलीय विनोद गोंटिया चुनाव हार गए जिन्हें केवल 50 वोट मिले। इस तरह प्रदेश की राजनीति में कमलनाथ ने अपनी अहमियत से सभी को एक बार फिर रू-ब-रू कराया। उनकी कोशिशों ने बसपा के सभी 4 वोट कांग्रेस के पक्ष में कराने की जुगत लगाई बल्कि एक निर्दलीय वोट भी दिलाया। इससे उनका प्रदेश की राजनीति में कद एकाएक बढ़ गया और तभी यह अंदाजा हो गया था कि 2018 के विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस को प्रदेश में एक सशक्त चेहरा मिल गया है जो मुख्यमंत्री भी होगा।
हुआ भी यही 26 अप्रेल 2018 को कमलनाथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष घोषित कर दिए गए तभी अघोषित ही सही लेकिन तय माना जाने लगा कि वही काँग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद का चेहरा होंगे। यूँ तो कमलनाथ की राजनीतिक सूझबूझ लगातार 4 दशकों से कहीं न कहीं दिखती रही। 1980 में उस समय भी साफ दिख गई थी जब मुख्यमंत्री पद की रेस में होकर भी उन्होंने अपने समर्थक 42 विधायकों के वोट अर्जुन सिंह को दिलवाकर मप्र का मुख्यमंत्री बना दिया और तब के कद्दावर नेता शिवभानु सोलंकी को शिकस्त दी। इसी तरह 1993 में भी उनका रणनीतिक कौशल फिर देखने को मिला जब दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री बनाने में भी जबरदस्त भूमिका निभाई। इन्हीं खूबियों ने उन्हें काफी ऊंची सोंच का कद्दावर और जनप्रिय नेता बना दिया। विरोध, विरोधियों और गुटबाजी की परवाह किए बगैर काम में विश्वास रखने वाले कमलनाथ ने महज साल भर में अपने काम से सबको चित्त कर दिया। भोपाल में रहने पर सुबह 10 बजे बिना नागा दफ्तर पहुंचकर देर रात तक लगातार काम करना, एक-एक फाइल पढ़ना, चर्चा कर फैसला लेने से प्रशासनिक हलकों में भी जबरदस्त कसावट आई। कम ही लोगों को पता होगा कि हाल में महाराष्ट्र का राजनीतिक संकट सुलझाने और एनसीपी, शिवसेना व काँग्रेस को साथ लाने में भी उनकी खास भूमिका थी।
17 दिसंबर 2018 को प्रदेश की बागडोर संभालते ही ताबड़तोड़ कामों को अंजाम देना शुरू कर दिया। आमजन के लिए सबसे बड़ी राहत बिजली बिल में भारी कमीं से मिली जिसमें 100 यूनिट 100 रुपए और 150 यूनिट का अलग स्लैब बनाकर राहत दी। इससे लोगों में अनावश्यक बिजली खपत को लेकर जागरूकता बढ़ी वहीं जेब भी कम खाली होने लगी। शपथ लेते ही किसान कर्जमाफी का वचन निभाया। जय किसान फसल ऋण माफी योजना में 20 लाख से अधिक किसानों की 7154 करोड़ रुपए की कर्ज माफी की वहीं 12 लाख से अधिक किसानों की 11675 करोड़ रुपए के कर्ज माफी की तैयारी है। राजस्व बढ़ाने के पुराने सारे रिकॉर्ड तोड़कर अपनी ऊंची सोच से प्रदेश को परिचित कराया। बीते वर्षों में रेत से महज 220 से 250 करोड़ रुपए की आय होती थी जो अब 1200 करोड़ रुपए से भी ऊपर पहुंचेगी। पन्ना की बंदर हीरा खदान से राज्य को हर बरस 520 करोड़ रुपए अलग मिलने की उम्मीद है। पानी की समस्या की विकरालता को देखते हुए नदियों के पुनर्जीवन योजना को खासी तवज्जो दी गई जिसमें अवैध उत्खनन से सूखी नदियां शामिल हैं। बारिश के पानी सहेजने के पुख्ता प्रबंध किए जा रहे हैं।
मप्र में मेट्रो परियोजना को तेजी से मूर्त रूप देने की तैयारी है। इन्दौर और भोपाल में युध्द स्तर पर काम शुरू है। बड़े महानगरों की तर्ज पर जल्द ही यहां मेट्रो दौड़ती दिखेगी। कमजोरों के लिए अल्प अवधि में ढ़ेरों काम बताता है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ सबकी सोचते हैं। वृध्दावस्था पेंशन 300 से बढ़ाकर 600 रुपए, गरीब कन्याओं के विवाह और निकाह की राशि 28 हजार से बढ़ाकर 51 हजार रुपए करना, आदिवासी समाज को साहूकारी कर्जों से मुक्ति दिलाना साहसिक काम है। स्थानीय बेरोजगारों को 70 प्रतिशत रोजगार गारण्टी देने हेतु अक्टूबर में मैग्नीफिसेन्ट मप्र के आयोजन में करीब 900 जाने-माने उद्योगपति शामिल हुए तथा 7 देशों ने निवेश की हामी भरी। इससे जहां 20 लाख रोजगार के मौके बनेंगे वहीं मप्र में महज 11 महीनों में बेरोजगारी दर 2.8 प्रतिशत घटकर 4.2 प्रतिशत रह गई जो 2018 में 7 प्रतिशत थी। जबकि देश में बहुत तेजी से बढ़ी है। मप्र में सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमई) की रिपोर्ट भी यही कहती है। सोलर रूफ टॉप प्रोजेक्ट में मध्यप्रदेश बहुत आगे निकल गया तथा एक वर्ष में ग्रिड कनेक्टेड प्रोजेक्ट में 670 मेगावाट क्षमता बढ़ी है। 645 मेगावाट की सौर परियोजनाएं और 25 मेगावाट की बायोमास परियोजनाएं भी स्थापित हुईं।
सॉफ्ट हिंदुत्व की राह चल कमलनाथ ने खुद को सबसे बड़ा गौभक्त भी साबित किया। पहले राम वन गमन पथ फिर एक हजार गौशाला बनाने का फैसला लिया। वहीं उज्जैन महाकाल मंदिर के विकास हेतु 300 करोड़, ओमकारेश्वर हेतु 156 करोड़ और खण्डवा के धूनीवाले दादा जी स्थल में 1932 से चले आ रहे विवाद को आपसी सहमति से निपटाने अन्यथा सरकार द्वारा अधिग्रहीत करने की बात कह वहां भी तमाम विकास की संभावनाओं को खोलना वो काम हैं जो एक अलग छवि बनाती है। छिंदवाड़ा के सिमरिया में 101 फीट के विशाल हनुमान प्रतिमा की स्थापना भी यही संकेत है। प्रदेश के छात्र-छात्राओं हेतु नई शिक्षा व्यवस्था हो इस हेतु एनसीईआरटी पाठ्यक्रम लागू किया गया जो 2021-22 तक 9वीं से 12वीं तक लागू हो जायेगा। गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की मंशा ने अध्यापन से जुड़े उन सरकारी शिक्षकों की नींद उड़ा दी जो महज पगार के लिए नौकरी करते थे और पढ़ाने के बजाए तमाम दफ्तरों में बाबूगिरी कर साइड इंकम पर ज्यादा ध्यान देते थे। दो बार दक्षता परीक्षा में गाइड लेकर भी फेल हुए शिक्षकों का जबरन रिटायरमेंट इसी बात का इशारा है। जल्द ही प्राइवेट स्कूलों की तर्ज पर सरकारी स्कूलों की व्यवस्थाएं बदलेंगी। शिक्षा में जो गुणवत्ता होनी ही चाहिए उसको लेकर कमलनाथ गंभीर दिखते हैं। सुपर स्पेशियलिटी स्वास्थ्य सुविधाओं के अलावा राशन की कालाबाजारी रोकने हेतु खास पहल और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी काफी बदलाव के संकेत मिल रहे हैं।
दरअसल सरकार के विजन और प्रशासनिक मशीनरी की दक्षता पर निर्भर होता है कि जनसरोकारों से जुड़े कामों में कोताही न हो और भृष्टाचार की भेंट न चढ़ें। चाहे मैदानी हलकों में योजनाओं का क्रियान्वयन हो या सीएम हेल्पलाइन से समस्या निदान, सभी पर पैनी नजर रखते हैं तभी तो बड़वानी के ब्लॉक पाटी के सीईओ को वीडियो कांफ्रेन्सिंग में गलत जानकारी देने पर सीधे निलंबन की कार्रवाई करा दी। वहीं माफिया मुक्त मप्र की परिकल्पना से संगठित अपराधों की रोकथाम हेतु महाराष्ट्र के मकोका जैसे कानून की तैयारी है। अधिकारियों को अपराध रोकने खातिर पूरी छूट देना बताता है कि उनकी सोच समाज को भय, भृष्टाचार व माफिया मुक्त वातावरण देने की है। ऑपरेशन क्लीन को अमली जामा पहना कर फिरौती, भू-माफिया, अवैध कब्जा, नशे का कारोबार, चिटफण्ड, ब्लैकमेलिंग, चूना डालकर जमीन हथियाना, अवैध खनन, अवैध कॉलोनियां, अवैध बस संचालन जैसे अवैध कारोबार पर कठोरता यही इशारा है। मिलावट चाहे खाद्य सामग्री में हो या उर्वरकों में इस पर कठोरता और कार्रवाई पूरे देश में सराही गई।
अब गुटबाजी, समर्थन और आंकड़ों की चर्चा तक नहीं होती। मजबूत सरकार के मुखिया के रूप में खुद को स्थापित कर चुके कमलनाथ के बारे में यह भी कहा जाता है कि संगठन के अलावा पूरे प्रदेश में उनके लोग हैं जो बिना उजागर हुए खुपिया तौर पर प्रशासन के कामकाज पर निगाह रखते हैं जिसकी सीधी, गोपनीय और भरोसेमन्द जानकारी उनको होती है। बेहतर प्रशासनिक पकड़ और अमल के लिए इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता।
कमलनाथ ने छिंदवाड़ा के विकास में 15 बरस भाजपा शासन रहते हुए भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी तभी तो आज मप्र ही नहीं पूरे देश में छिंदवाड़ा मॉडल की गूंज सुनाई देती है। उन्होंने यह साबित भी कर दिखाया है कि जनप्रतिनिधि यदि ठान ले तो उसका क्षेत्र पिछड़ा रह ही नहीं सकता। अब इसी तर्ज पर पूरा मप्र कमलनाथ का है और महज 8-9 महीने (लोकसभा चुनाव के 2-3 महीने छोड़ दें तो) में जितने काम हुए और दिखे तथा यही रफ्तार बनी रही तो निश्चित रूप से मध्यप्रदेश, देश का रोल मॉडल बनेगा और यहां के निवासियों को इस बात का गुमान भी होगा कि यह है मेरा मध्यप्रदेश।