आग की लपटें

तमाम जागरूकता अभियानों, चेतावनियों, बिजली और आग से होने वाली दुर्घटनाओं से सावधान करने वाले अत्याधुनिक उपकरणों के उपयोग के बावजूद संवेदनशील जगहों पर भी आग लगने की घटनाओं को रोकना चुनौती बना हुआ है। दिल्ली के रानी झांसी रोड पर करीब 15 दिन पहले लगी आग ने तमाम दावों और उपायों की पोल खोल दी थी। इस कांड के बाद सरकारी स्तर पर जिस तरह की तत्परता दिखाई गई थी, वह एक बार फिर आग के गुबार में बदल गई। दिल्ली में औद्योगिक ठिकानों में आग लगने की घटनाएं थमती नहीं दिख रही हैं। अनाज मंडी इलाके में लगी आग में 50 लोगों की मौत के बाद अब किराड़ी गोदाम आग लगी है और अब तक 9 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि कई लोग झुलस गए हैं। पता चला है कि गोदाम में आग रोकने के लिए सुरक्षा उपकरण मौजूद नहीं थे। पुलिस को पहले घर में सिलेंडर फटने की सूचना मिली थी, लेकिन बाद में गोदाम में आग लगने की पुष्टि की गई। आग लगने के कारण अभी पता नहीं चला है। पुलिस और जांच टीम मामले की जांच कर रही है। आग की सूचना के बाद मौके पर पहुंची फायर ब्रिगेड की टीम ने काफी मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया। गोदाम में सुरक्षा उपाय नहीं किए गए थे। आग बुझाने के लिए सेफ्टी उपकरण नहीं थे और गोदाम से निकलने के लिए भी सिर्फ एक ही सीढिय़ां थीं। अभी तक मिली जानकारी के अनुसार मृतकों में महिलाएं भी शामिल हैं। घटना स्थल पर मौजूद लोगों का कहना है कि चार मंजिला इमारत के निचले हिस्से में गोदाम है जहां सबसे पहले आग लगी। मृतकों में सभी लोग आग लगने के दौरान ऊपरी मंजिल पर सो रहे थे। 
पहले अनाज मंडी और अब किराड़ी गोदाम की घटना यह बताने के लिए काफी है कि हम दूसरों की जान को लेकर कितने बेफिक्र हैं। अग्निशमन संबंधी व्यवस्था के मामले में प्राय: लापरवाही का ही आलम देखा जाता है। यहां तक कि कई बार सरकारी मंत्रालयों के दफ्तरों में भी लपटें जरूरी दस्तावेज स्वाहा कर देती हैं। ऐसी जगहों पर लगने वाली आग को किसी कारखाने या झुग्गी बस्ती में लगने वाली आग की घटना की तरह नहीं देखा जा सकता, जहां अग्निशमन विभाग और संबंधित लोगों की मिलीभगत या मनमानी की वजह से दुर्घटनाएं घट जाती हैं। इन जगहों की सुरक्षा को लेकर खासी सावधानी बरती जाती है, खासकर आग के मामले में। फिर भी ऐसी घटनाएं हो जाती हैं, तो इसमें सरकारी कामकाज का ढर्रा भी बहुत हद तक जिम्मेदार है। मशीनों को ठीक से बंद न करना, बिजली के स्विच, तारों वगैरह का ध्यान न रखा जाना, अग्निशमन संबंधी स्वचालित यंत्रों का रखरखाव ठीक न होना आदि भी बड़ा कारण है। जब तक इस प्रवृत्ति में सुधार नहीं आता, आग से होने वाली दुर्घटनाओं पर काबू पाना मुश्किल बना ही रहेगा। यह एक आम सर्वस्वीकृत प्रवृत्ति बन चुकी है कि सार्वजनिक व व्यावसायिक भवनों में अग्निशमन और आपातकालीन उपायों पर ध्यान देना, उनसे जुड़े नियम-कायदों का पालन करना जरूरी नहीं समझा जाता। इन नियमों का पालन कराने वाला महकमा भी अपनी आंखें मूंदे रखता है। अक्सर बिजली के तारों या ट्रांसफारर्मर से उठने वाली चिनगारी से भयानक हादसे हो जाते हैं। मगर हैरानी की बात है कि उसे लेकर सुरक्षा उपाय नहीं जुटाए जाते। 
उपहार सिनेमा कांड के बाद सख्ती बरतते हुए भीड़भाड़ वाले सार्वजनिक और व्यावसायिक भवन में स्वचालित अग्निशमन उपकरण लगाना जरूरी कर दिया गया। मगर भवनों की व्यावसायिक मंजूरी लेने की गरज से भले ऐसे उपाय कर दिए जाते हैं, पर ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि उनके रखरखाव पर ध्यान नहीं दिया जाता और वे उपकरण सड़ी-गली हालत में बस दिखावे के लिए पड़े रहते हैं। दिल्ली की जिस इमारत में आग लगी, अगर स्वचालित अग्निशमन व्यवस्था होती, तो इतना बड़ा हादसा शायद न हो पाता।