370, राम मंदिर, नागरिकता कानून...तमाम दावों के बीच झारखंड में कैसे टूट गया बीजेपी का तिलिस्म?


रांची
झारखंड चुनाव में मिली सियासी हार बीजेपी के लिए किसी झटके से कम नहीं है। प्रदेश में महागठबंधन की जीत के बाद अब हेमंत सोरेन नए सीएम बनने की तैयारी कर रहे हैं। वहीं रघुबर दास ने जहां झारखंड के जनादेश को स्वीकार करने की बात कही है, वहीं दूसरी ओर बीजेपी अब उन कारणों पर मंथन करने में जुटी है, जिसके कारण उसे इस बार हार का सामना करना पड़ा है। झारखंड के चुनावी रिजल्ट ने एक बार फिर सियासत में केंद्रीय मुद्दों पर स्थानीय मुद्दों के हावी होने के संकेत दिए हैं। झारखंड के चुनाव के वक्त पीएम नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कई रैलियां की। देश के अन्य राज्यों की तरह झारखंड के चुनाव में जहां बीजेपी ने केंद्र सरकार की उपलब्धियों और मुद्दों के आधार पर लोगों को पक्ष में करने का प्रयास किया, वहीं गठबंधन के लोग स्थानीय मुद्दों पर जोर देते रहे। झारखंड में बीजेपी की रैली में जहां अमित शाह ने आकाश से ऊंचा राम मंदिर बनाने जैसे बयान देकर लोगों को लुभाने की कोशिश की, वहीं पीएम मोदी भी अपने भाषणों में कांग्रेस की कमियों पर बरसते रहे। स्थानीय मुद्दों से इतर भाषणों में ऐसे जिक्र के कारण ही बीजेपी को काफी नुकसान उठाना पड़ा।
नागरिकता कानून और एनआरसी की लड़ाई
झारखंड चुनाव के मतदान उस वक्त हुए जब देश की संसद में नागरिकता संशोधन विधेयक को पास कराया गया। केंद्रीय संसद में पास हुए नागरिकता कानून के खिलाफ देशभर में विरोध प्रदर्शन शुरू हुए तो झारखंड में बीजेपी को इसका नुकसान भी उठाना पड़ा। इसके अलावा पश्चिम बंगाल में एनआरसी और नागरिकता कानून का जमकर विरोध होना भी बीजेपी के लिए नुकसान का कारण बना।
आर्थिक मंदी का भी हुआ असर
झारखंड के चुनाव प्रचार अभियान के दौरान विपक्ष ने देश में आर्थिक मंदी के मुद्दे को जमकर प्रचारित किया। केंद्र सरकार के तमाम दावों के बीच प्याज की बढ़ती कीमत, महंगाई दर में इजाफा, विकास दर में गिरावट जैसे कई मुद्दों पर बीजेपी के खिलाफ विपक्ष ने जमकर प्रचार किया। इसके अलावा झारखंड के बोकारो, जमशेदपुर समेत अन्य हिस्सों में तमाम उद्योगों पर आर्थिक मंदी के प्रभाव ने भी बीजेपी को इन इलाकों में नुकसान पहुंचाया।

रघुबर दास के विरोध और संगठन में बगावत का नुकसान
प्रदेश में पांच साल सरकार चलाने वाले रघुबर दास अपने पक्ष में खास लोकप्रियता नहीं बटोर सके। इसके अलावा उन्हें चुनाव में स्थानीय नेताओं की नाराजगी का भी सामना करना पड़ा। बीजेपी के टिकट बंटवारे में रघुबर दास अपनी इच्छा के अनुरूप प्रत्याशी बनाते रहे, इसके कारण पार्टी के आंतरिक संगठन में रघुबर दास को लेकर जमकर विरोध देखने को मिला। इसके साथ ही सरयू राय जैसे सीनियर पार्टी नेताओं की बीजेपी से बगावत का असर पूरे राज्य में देखने को मिला, जिसके कारण बीजेपी के वोटर भी पार्टी की विजय के प्रति आशंकित दिखे।
प्रमुख नेताओं को साइडलाइन करते रहे रघुबर
झारखंड की सत्ता के शीर्ष पर रहे रघुबर दास की कार्यशैली कई बार बीजेपी के लिए परेशानी का कारण बनी। रघुबर दास ने 2019 के विधानसभा चुनावों में पार्टी के शीर्षतम नेताओं में से एक और झारखंड के प्रमुख आदिवासी नेता अर्जुन मुंडा समर्थकों को टिकट देने से इनकार कर दिया। मुंडा के समर्थक सभी 11 विधायकों के टिकट काट दिए गए। इसके अलावा रघुबर ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष सुदेश महतो को भी साइडलाइन करते रहे। गठबंधन में रहते हुए आजसू अध्यक्ष सुदेश महतो ने एक प्रकार से राज्य की रघुवर दास सरकार के लिए विपक्ष के तौर पर काम किया। बीजेपी के कुछ नेताओं ने भी यह कहा कि भारतीय जनता पार्टी और एजेएसयू का गठबंधन सिर्फ दास की जिद के चलते नहीं हो सका।

आदिवासी बनाम गैर आदिवासी चेहरे की जंग
विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान विपक्ष ने झारखंड में आदिवासी बनाम गैर आदिवासी के मुद्दे को भी जमकर प्रचारित किया। आदिवासी वोटरों की निर्णायक संख्या वाले झारखंड में बीजेपी ने संगठन की तमाम मांग के बावजूद गैर आदिवासी चेहरे रघुबर दास को अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाया। वहीं गठबंधन के नेताओं ने हेमंत सोरेन को अपने चेहरे के रूप में प्रॉजेक्ट किया, जो कि आदिवासी समाज के एक बड़े नेता के रूप में जाने जाते हैं। दास सरकार के दो कानूनों छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट (सीएनटी) और संथाल परगना अधिनियम में संशोधन करने का कदम राज्य के आदिवासी लोगों को अच्छा नहीं लगा। जब विभिन्न संगठनों ने रांची में विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया, तो दास ने बलपूर्वक आंदोलन को खत्म करने के लिए बल प्रयोग की अनुमति दी। इसे विपक्ष ने एक सियासी हथियार के रूप में इस्तेमाल किया और आदिवासी वोटर विपक्ष के साथ जाते दिखे।

राम मंदिर के मुद्दे पर जल, जंगल का मुद्दा भारी
झारखंड में विपक्षी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में स्थानीय मुद्दों पर ज्यादा फोकस किया। जेएमएम ने अपने चुनाव में खाली सरकारी पदों पर स्थानीय युवाओं की नियुक्ति करने और बेरोजगारी भत्ता देने जैसे मुद्दे उठाए, वहीं बीजेपी पर नौकरियों को खत्म करने का आरोप लगाया। इसके अलावा जेएमएम ने अपने घोषणा पत्र में स्थानीय लोगों को टेंडर प्रक्रिया में तरजीह देने, भूमिहीनों को जमीन दिलाने, सरकारी नौकरी में पिछड़े वर्ग के लोगों को आरक्षण देने, जल, जंगल और आदिवासियों का संरक्षण करने के मुद्दों को तरजीह दी। दूसरी ओर बीजेपी ने भी इन मुद्दों पर फोकस करने का प्रयास किया लेकिन आम लोगों का विश्वास जीतने में नाकाम रही। बीजेपी राम मंदिर जैसे मुद्दों के बहाने वोटरों को अपने पाले में करने की कोशिश करती रही और मतदाताओं ने स्थानीय मुद्दों पर विपक्ष को अपना जनादेश दे दिया।