सियाचिन / 18 हजार फीट की ऊंचाई पर गश्त कर रहे भारतीय सैनिक एवलांच की चपेट में आए, 2 शहीद





Army patrol caught in avalanche in South Siachen, two soldiers killed





लेह. लद्दाख के दक्षिण सियाचिन ग्लेशियर में शनिवार सुबह पेट्रोलिंग पर निकले भारतीय सैनिक एवलांच (हिमस्खलन) की चपेट में आ गए। इसके बाद सेना की रेस्क्यू टीम ने स्थानीय लोगों की मदद से उन्हें सुरक्षित निकाला, लेकिन इलाज के दौरान नायब सूबेदार सेवांग ग्यालशन और राइफलमैन पदम नोरगैस ने दम तोड़ दिया। रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया कि घटना के वक्त सेना का दल 18 हजार फीट की ऊंचाई पर था। इसके बाद रेस्क्यू के लिए दो आर्मी हेलिकॉप्टर भेजे गए।


इसी महीने 19 नवंबर को सियाचीन के उत्तरी ग्लेशियर के पास हिमस्खलन की चपेट में आकर चार जवान शहीद हो गए थे। दो आम नागरिकों की भी जान चली गई थी। करीब 20 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित सियाचिन दुनिया का सबसे ऊंचा रणक्षेत्र है, जो लद्दाख का हिस्सा है। कश्मीर में अनुच्छेद 370 समाप्त होने के बाद लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बन चुका है।


2016 में एवलांच ने 10 जवानों की जान ली थी


मालूम हो कि सियाचिन ग्लेशियर में इन दिनों माइनस 30 डिग्री तापमान है। यह दुनिया का सबसे ऊंचा रणक्षेत्र है। यहां दुश्मन की बजाय मौसम आधारित परिस्थितियों से सैनिकों की जान ज्यादा जाती है। फरवरी 2016 में हुए हिमस्खलन में 10 जवानों की मौत  हो गई थी।


सेना के लिए क्यों अहम है सियाचिन?


हिमालयन रेंज में स्थित सियाचिन ग्लेशियर से चीन और पाकिस्तान दोनों पर नजर रखी जाती है। सर्दियों के सीजन में यहां काफी एवलांच आते हैं। औसतन 1000 सेंटीमीटर बर्फ गिरती है। न्यूनतम माइनस 60 डिग्री तक हो जाता है। यहां तैनात जवानों की शहादत ज्यादातर एवलांच, लैंड स्लाइड, ज्यादा ठंड के चलते टिश्यू ब्रेक, एल्टिट्यूड सिकनेस और पैट्रोलिंग के दौरान ज्यादा ठंड से हार्ट फेल होने से होती है। सियाचिन में फॉरवर्ड पोस्ट पर एक जवान की तैनाती 30 दिन से ज्यादा नहीं होती। 1984 से लेकर 2016 तक करीब 900 जवान शहीद हुए थे।